अन्तःकरण
की दो धाराएँ
होती हैं- एक
होती है चिन्ता
की धारा और
दूसरी होती है
चिन्तन की
धारा, विचार
की धारा।
जिसके
जीवन में
दिव्य विचार
नहीं है,
दिव्य चिन्तन
नहीं है वह
चिन्ता की खाई
में गिरता है।
चिन्ता से
बुद्धि
संकीर्ण होती
है। चिन्ता से
बुद्धि का
विनाश होता
है। चिन्ता से
बुद्धि कुण्ठित
होती है।
चिन्ता से
विकार पैदा
होते हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu
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