बाहर के
शत्रु-मित्र
का ज्यादा
चिन्तन मत करो।
बाहर की
सफलता-असफलता
में न उलझो।
आँखें खोलो।
शत्रु-मित्र,
सफलता-असफलता
सबका मूल
केन्द्र वही
अधिष्ठान
आत्मा है और
वह आत्मा
तुम्हीं हो
क्यों कें...
कें... करके
चिल्ला रहे
हो, दुःखी हो
रहे हो? दुःख और
चिन्ताओं के
बन्डल बनाकर
उठा रहे हो और
सिर को थका
रहे हो? दूर फेंक
दो सब
कल्पनाओं को। 'यह
ऐसा है वह ऐसा
है... यह कर
डालेगा... वह
मार देगा.... मेरी
मुसीबत हो
जाएगी....!' अरे ! हजारों
बम गिरे फिर
भी तेरा कुछ
नहीं बिगाड़
सकता। तू ऐसा
अजर-अमर आत्मा
है।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
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