एक दिन तुम
यह सब छोड़
जाओगे और
पश्चाताप हाथ
लगेगा। उससे
पहले मोह-ममतारूपी
पाश को विवेकरूपी
कैंची से
काटते रहना।
बाहर के
मित्रों से, सगे-सम्बन्धियों
से मिलना, पर
भीतर से समझनाः
‘न कोई
मित्र है न सगे-सम्बन्धी,
क्योंकि ये भी
सब साथ छोड़
जायेंगे।
मेरा मित्र तो
वह है जो अन्त
में और इस शरीर
की मौत के बाद
भी साथ न
छोड़े’।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
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