हे साधक ! तथा
कथित मित्रों
से, सांसारिक
व्यक्तियों से
अपने को बचाकर
सदा एकाकी
रहना। यह तेरी
साधना की परम
माँग है।
स्वामी
रामतीर्थ
प्रार्थना
किया करते थेः
"हे
प्रभु !
मुझे सुखों से
और मित्रों से
बचाओ। दुःखों
से और शत्रुओं
से मैं निपट
लूँगा। सुख और
मित्र मेरा
समय व शक्ति
बरबाद कर देते
हैं और आसक्ति
पैदा करते
हैं। दुःखों
में और
शत्रुओं में
कभी आसक्ति
नहीं होती।
जब-जब साधक
गिरे हैं तो
तुच्छ सुखों
और मित्रों के
द्वारा ही
गिरे हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu
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