तुलसीदास
जी कहते हैं-
घट
में है सूझे
नहीं, लानत
ऐसे जिन्द।
तुलसी
ऐसे जीव को, भयो
मोतियाबिन्द।।
गहरा
श्वास लेकर ॐ
का गुंजन करो....
बार-बार गुंजन
करो और
आनन्दस्वरूप
आत्मरस में
डूबते जाओ। कोई
विचार उठे तो
विवेक जगाओ
कि, मैं विचार
नहीं हूँ।
विचार उठ रहा
है मुझ चैतन्यस्वरूप
आत्मा से। एक
विचार उठा....
लीन हो गया.. दूसरा
विचार उठा...
लीन हो गया।
इन विचारों को
देखने वाला
मैं साक्षी
आत्मा हूँ। दो
विचारों के
बीच में जो
चित्त की
प्रशांत
अवस्था है वह
आत्मा मैं
हूँ। मुझे
आत्मदर्शन की
झलक मिल रही है....।
ॐ आनंद.... खूब
शांति। मन की
चंचलता मिट
रही है....
आनंदस्वरूप
आत्मा में मैं
विश्राम पा
रहा हूँ।
Pujya Asharam Ji Bapu

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