Tuesday 30 December 2014

1286_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~ मधुर व्यवहार ~~~
असत्य, निंदा, चुगलखोरी और कठोरता - यह वाणी के पाप हैं ।

हित, मिट, शांत, मधुर और प्रिय भाषण - यह पाँच वाणी के गुण हैं ।

आप अमानी रहो । औरों को मान दो ।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 22 December 2014

1285_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जिस समय जो काम करो, बड़ी सूक्ष्मदृष्टि से करो, लापरवाही नहीं, पलायनवादिपना नहीं। जो काम करो, सुचारू रूप से करो। बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय काम करो। कम-से-कम समय लगे और अधिक से अधिक सुन्दर परिणाम मिले इस प्रकार काम करो। ये उत्तम कर्त्ता के लक्षण हैं।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday 11 December 2014

1284_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

मन को उदास मत करो। सदैव प्रसन्नमुख रहो। हँसमुख रहो। तुम आनन्दस्वरूप हो। भय, शोक, चिन्ता आदि ने तुम्हारे लिए जन्म ही नहीं लिया है, ऐसी दृढ़ निष्ठा के साथ सदैव अपने आत्मभाव में स्थिर रहो।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu



Wednesday 10 December 2014

1283_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



 ईश्वर का स्मरण करते-करते काम करो। इसकी अपेक्षा काम ईश्वर का समझकर तत्परता से करो यह श्रेष्ठ है।जिस समय जो शास्त्र अनुमोदित काम करते हो उसमें तत्पर हो जाओ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday 9 December 2014

1282_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



गुणग्राहि बने..

"हे रामजी ! संत में एक भी सदगुण दिखे तो लाभ ले लें। उनमें दोष देखना और सुनना अपने को मुक्तिफल से वंचित करके अशांति की आग में झोंकने के बराबर है।

'श्री योगवाशिष्ठ महारामायण'

Thursday 27 November 2014

1281_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

...सब हानि-लाभ समान है

निजानंद में मग्न आत्मज्ञानी संत पुरुषों को भला निंदा-स्तुति कैसे प्रभावित कर सकती है? वे तो सदैव ही उस अनंत परमात्मा के अनंत आनंद में निमग्न रहते हैं। वे महापुरुष उस पद में प्रतिष्ठित होते हैं जहाँ इन्द्र का पद भी छोटा हो जाता है।


इन्द्र का वैभव भी तुच्छ समझने वाले ऐसे संत, जगत में कभी-कभी, कहीं-कहीं, विरले ही हुआ करते हैं। समझदार तो उनसे लाभ उठाकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा तय कर लेते हैं, परंतु उनकी निंदा करने-सुनने वाले तथा उनको सताने वाले दुष्ट, अभागे, असामाजिक तत्त्व कौन सी योनियों में, कौन सी नरक में पच रहे होंगे यह हम नहीं जानते। ॐ

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

1280_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



वेदान्त शास्त्र यह नहीं कहता कि ‘अपने आपको जानो ।’ अपने आपको सभी जानते हैं । कोई अपने को निर्धन जानकर धनी होने का प्रयत्न करता है, कोई अपनेको रोगी जानकर निरोग होने को इच्छुक है । कोई अपनेको नाटा जानकर लम्बा होने के लिए कसरत करता है तो कोई अपनेको काला जानकर गोरा होने के लिए भिन्न भिन्न नुस्खे आजमाता है ।



नहीं, वेदान्त यह नहीं कहता । वह तो कहता है : ‘अपने आपको ब्रह्म जानो ।’ जीवन में अनर्थ का मूल सामान्य अज्ञान नहीं अपितु अपनी आत्मा के ब्रह्मत्व का अज्ञान है । देह और सांसारिक व्यवहार के ज्ञान अज्ञान से कोई खास लाभ हानि नहीं है परंतु अपने ब्रह्मत्व के अज्ञान से घोर हानि है और उसके ज्ञान से परम लाभ है ।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 17 November 2014

1279_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~~~ .....नहीं तो सिर धुन-धुनकर पछताना पड़ेगा  ~~~~~~~

संसार के जिन-जिन पदार्थों, वस्तुओं आदि को हम अपना मान रहे हैं, वे हमारे नहीं हैं, उनसे हमारा वियोग अवश्यंभावी है। अतएव उनके संग्रह, संरक्षण में ईश्वर को भुला देना उचित नहीं। परमात्मा की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले कर्मों के अतिरिक्त सभी कर्म व्यर्थ अथवा अनर्थ हैं।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 16 November 2014

1278_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~निन्दा-स्तुति की उपेक्षा करें~~~~~~

निन्दा और अपमान की परवाह न करें। निर्भय रहें। प्रसन्न रहें। अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहें। जो डरता है उसी को दुनिया डराती हैं। यदि आपमें डर नहीं है, आप निर्भय हैं तो काल भी आपका बाल बाँका नहीं कर सकता। जो आत्मदेव में श्रद्धा रखकर निर्भयता से व्यवहार करता है वह सफलतापूर्वक आगे बढ़ता जाता है। उसे कोई रोक नहीं सकता। वह अपनी मंजिल तय करके ही रहता है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 15 November 2014

1277_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~ उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ ~~~~

जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।

उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।

ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Friday 14 November 2014

1276_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

यो गुरु स शिवः प्रोक्तो, यः शिवः स गुरुस्मृतः |

विकल्पं यस्तु कुर्वीत स नरो गुरुतल्पगः ||




जो गुरु हैं वे ही शिव हैं, जो शिव हैं वे ही गुरु हैं | दोनों में जो अन्तर मानता है वह गुरुपत्नीगमन करनेवाले के समान पापी है |

- भगवान शिव जी  (स्कन्द पुराण अंतर्गत शिव पार्वती संवाद )

Thursday 13 November 2014

1275_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU




हरि गुरु साध समान चित्त, नित आगम तत मूल।
इन बिच अंतर जिन परौ, करवत सहन कबूल ॥


समस्त शास्त्रों का सदैव यही मूल उपदेश है कि भगवान, गुरु और संत इन तीनों का चित्त एक समान (ब्रह्मनिष्ठ) होता है। उनके बीच कभी अंतर न समझें, ऐसी दृढ़ अद्वैत दृष्टि रखें फिर चाहे आरे से इस शरीर कट जाने का दंड भी क्यों न सहन करना पडे़ ।
-संत रैदास जी

Tuesday 11 November 2014

1274_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~~~~  गुरूभक्तियोग की महत्ता  ~~~~~~~

आकल्पजन्मकोटीनां यज्ञव्रततपः क्रियाः।
ताः सर्वाः सफला देवि गुरूसंतोषमात्रतः।।


'हे देवी ! कल्पपर्यन्त के, करोड़ों जन्मों के यज्ञ, व्रत, तप और शास्त्रोक्त क्रियाएँ... ये सब गुरूदेव के संतोष मात्र से सफल हो जाते हैं।'
(भगवान शंकर)

Sunday 9 November 2014

1273_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU




~~~~~~   हो गई रहेमत तेरी......  ~~~~~~~

हे प्यारे सदगुरू परमात्मा ! मुझे अपनी आत्म-मस्ती में थाम लो। मैं संसारियों के अज्ञान में कहीं बदल न जाऊँ। मोह-ममता में कहीं फिसल न जाऊँ।


जेसीं जिय  जान रहे जेसीं तन में प्राण रहे।

प्रीत संधी डोरी तो पासे सरधी रहे।।

डप आहे मुखे इहो वञ्जों मतां तो खां मां विछड़ी।

अञां प्रीत संधी डोरी सजण आहे कचड़ी।।

जोरसां जलजा अञां नंढडो ही बालक।।

तब तक जी में जान है, तन में प्राण है तब तक मेरी साधना की डोरी, मेरी प्रीति की डोरी तेरी तरफ सरकती रहे... सरकती रहे....।

इस बात का तू ख्याल रखना।

Thursday 6 November 2014

1272_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

   ~~~~~ क्षण का भी प्रमाद मृत्यु है  ~~~~~~

प्रिय आत्मन् ! न तेरा पहले जन्म था न वर्त्तमान में है और न आगे होगा। यदि क्षणमात्र के लिए अपने आसन से हटेगा, अपने आपको स्वरूप में स्थित न मानेगा, प्रमाद करेगा तो वही प्रमाद विस्तीर्ण जगत हो भासेगा।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday 5 November 2014

1271_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



विदाई की वेला में

ऐसा व्यक्ति नहीं, जो मरेगा नहीं। ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसका वियोग न होगा। ऐसा कोई देश-देशांतर, लोक-लोकांतर नहीं है जो प्रलय से बच पायेगा। अतः अनित्य की आसक्ति छोड़कर नित्यमुक्त आत्मस्वरूप में स्थिर होने के लिए जो सावधान रहता है उसी का जीवन सफल होता है, उसी का जन्म धन्य है !
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 27 October 2014

1270_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सभी शास्त्रों का सार...

शरीर न सत् है, न सुन्दर है और न प्रेमरूप है। यह तो हड्डी-मांस, रूधिर और वात-पित्त-कफ से बना हुआ एक जड़ ढाँचा है। यह शरीर पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा और अभी भी नहीं (मृत्यु) की तरफ जा रहा है। परंतु आप तो पहले भी थे, अभी भी हो और बाद में भी रहोगे। अपने को सदैव सच्चिदानंदस्वरूप मानो।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 26 October 2014

1269_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

                           

    ~~~~~ सावधान.....! ~~~~

अनुभवी आदमी प्रकृति की एकाध थप्पड़ से चेत जाता है और नहीं चेतेगा तो दूसरी मिलेगी, तीसरी मिलेगी। संसार में थप्पड़ मार-मरकर प्रकृति तुम्हें परमात्मा में पहुँचाना चाहती है। समझकर पहुँचना है तो तुम्हें हँसते-खेलते हुए पहुँचा देने के लिए वह प्रकृति देवी तैयार है। अगर नहीं मानते हो, संसार में मोह ममता करते हो तो मोह-ममता की चीजें छीनकर, थप्पड़ें मारकर भी तुम्हें जगाने के लिए वह प्रकृति देवी सक्रिय है। वह है तो आखिर परमात्मा की ही आह्लादिनी शक्ति। वह तुम्हारी शत्रु नहीं है, शुभचिन्तक है।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 25 October 2014

1268_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~ प्राप्ति और प्रतीति ~~~~

प्रतीति होती है माया में और प्राप्ति होती है अपने परब्रह्म परमात्मा-स्वभाव की। प्राप्त होने वाली एक ही चीज है, प्राप्त होने वाला एक ही तत्त्व है और वह है परमात्म-तत्त्व। उसकी ही केवल प्राप्ति होती है।प्रतीति होती है वृत्तियों से।जो बाहर से मिलेगा, वह सब प्रतीति मात्र होगा।जैसे स्वप्न की चीजों को साथ में लेकर आदमी जाग नहीं सकता, ऐसे ही प्रतीति को सच्चा मानकर परमात्म-तत्त्व में जाग नहीं सकता।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday 22 October 2014

Shubh Diwali

ज्ञान की चिंगारी को फूँकते रहना। ज्योत जगाते रहना। प्रकाश बढ़ाते रहना। सूरज की किरण के जरिये सूरज की खबर पा लेना। सदगुरुओं के प्रसाद के सहारे स्वयं सत्य की प्राप्ति तक पहुँच जाना। ऐसी हो मधुर दिवाली आपकी...

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 20 October 2014

1267_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



कबीर जी ने कहाः

कबीरा निन्दक ना मिलो पापी मिलो हजार।
एक निन्दक के माथे पर लाख पापीन को भार।।

विवेकानन्द कहते थेः 'तुम किसी का मकान छीन लो यह पाप तो है लेकिन इतना नहीं। वह घोर पाप नहीं है। किसी के रूपये छीन लेना पाप है लेकिन किसी की श्रद्धा की डोर तोड़ देना यह सबसे बड़ा घोर पाप है क्योंकि उसी श्रद्धा से वह शांति पाता था, उसी श्रद्धा के सहारे वह भगवान के तरफ जाता था।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 19 October 2014

1266_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

साम्य द्रष्टि आना चाहिए,यही सारी सृष्टि मंगलमय मालूम होनी चाहिए । जैसे तुम्हें खुद अपने पर विश्वास है वैसा ही सारी सृष्टि पर तुम्हारा विश्वास होना चाहिए ।यहाँ डरने की बात ही क्या है ? सब कुछ सुद्ध और पवित्र है । यह विश्व मंगलमय है क्योंकि परमेश्वर उसकी देख-भाल करता है।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Friday 17 October 2014

1265_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



आत्मा से बाहर मत भटको । अपने ही केन्द्र में स्थिर रहो अन्यथा तुम गिर पड़ोगे । अपने आप में पूर्ण विश्वास रखो । अपने केन्द्र पर डटे रहो । कोई चीज तुम्हें टस से मस नहीं कर सकती ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday 14 October 2014

1264_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



असल मे डरने की बात ही नही ।चारों ओर,आगे और पीछे, भूत में और भविष्य में सारे देश में एक ही परमात्मा विधमान है और वह हमारा ही आत्मदेव है और मुझे डर किससे हो ?
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 13 October 2014

1263_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~~~ बुद्धि महान कैसे होती है ? ~~~~~~

बुद्धि को भगवत्प्राप्ति के योग्य बनाओ। जो जरूरी है वह करो, अनावश्यक कार्य और भोग सामग्री में उलझो नहीं। जब बुद्धि बाहर सुख दिखाती है तो क्षीण हो जाती है और जब अंतर्मुख होती है तो महान हो जाती है।
द्धि नष्ट कैसे होती है ?

अपने-आप में अतृप्त रहना, असंतुष्ट रहना, किसी के प्रति राग-द्वेष करना, भयभीत रहना, क्रोध करना आदि से बुद्धि कमजोर हो जाती है।

जो काम है, वासना है कि ʹयह मिल जाय तो सुखी हो जाऊँ, यह पाऊँ, यह भोगूँ....ʹ इससे बुद्धि छोटी हो जाती है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 12 October 2014

1262_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

      

  ~~~~~~  वीर ! तुम बढ़े चलो....  ~~~~~

हे विद्यार्थी ! पुरुषार्थी बनो, संयमी बनो, उत्साही बनो। लौकिक विद्या तो पाओ ही पर उस विद्या को भी पा लो, जो मानव को जीते-जी मृत्यु के पार पहुँचा देती है।उसे भी जानो जिसको जानने से सब जाना जाता है, इसी में तो मानव-जीवन की सार्थकता है। हे वीर ! तुम बढ़े चलो....

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 11 October 2014

1261_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~~~~~~~  उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ  ~~~~~~~~~~~~

उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।

ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)

जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday 9 October 2014

1260_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं-

प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।

''हे अर्जुन ! जिस काल में पुरूष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।"

जो अपने आप में तृप्त है, अपने आप में आनन्दित है, अपने आपमें खुश है वह स्थितप्रज्ञ है। तस्य तुलना केन जायते ? उसकी तुलना और किससे करें ? वह ऐसा महान हो जाता है। ऐसे महापुरूष का तो देवता लोग भी दर्शन करके अपना भाग्य बना लेते हैं। तैंतीस करोड़ देवता भी ऐसे महापुरूष का आदर करते हैं तो औरों की क्या बात है ?

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday 8 October 2014

1259_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~~  शक्ति सुरक्षा का एक अदभुत उपाय  ~~~~~

तालुस्थान (दाँतों से करीब आधा सें.मी. पीछे) में जिह्वा लगाने से जीवनशक्ति केन्द्रित हो जाती है और मस्तिष्क के दायें व बायें भागों में संतुलन रहता है। जब ऐसा संतुलन होता है तब व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, सर्जनात्मक प्रवृत्ति खिलती है और प्रतिकूलताओं का सामना सरलता से हो सकता है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday 7 October 2014

1258_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~  जीवन को महान बनाना है तो.... ~~~~

शास्त्रकारों ने लिखा हैः

आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।

आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।

ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः

अतिसृष्टो अपां वृषभोઽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः। इदं तमति सृजामि तं माઽभ्यवनिक्षि।


ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है,  उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में  उल्लेख आता हैः

रुजन् परिरूजन् मृणन् प्रमृणन्।। म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।


ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)

Monday 6 October 2014

1257_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं। स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं।।
हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर ! ठोकरें इन्सान को चलना सिखाती हैं।।

Saturday 4 October 2014

1256_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~  एकाग्रता से आत्मशाँति  ~~~~
पुरुष यह चिन्तन करने लगे की सुख-दुःख सब आने-जानेवाला है, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ ये सब प्रकृति के हैं, उसको देखनेवाला मैं असंगो अयं पुरुषः केवल निर्गुणश्च तो क्यों वह सफल नहीं होगा?
इस प्रकार एकाग्रता को तत्त्वज्ञान में ले जाओ तो बेड़ा पार हो जाये।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

1255_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



सर्वदा आनन्द में, शांतमना होकर रहो

सुख-दुःख, मान-अपमान, हर्ष-शोक आदि द्वन्द्व शरीर के धर्म हैं। जब तक शरीर है, तब तक ये आते जाते रहेंगे ।उनके आने पर तुम व्याकुल मत होना। तुम पूर्ण आत्मा हो, अविनाशी हो और सुख-दुःख आने जाने वाले हैं।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday 2 October 2014

1254_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

संसार कल्पित मानता, नहीं भोग में अनुरागता।
सम्पत्ति पा नहीं हर्षता, आपत्ति से नहीं भागता॥

निज आत्म में संतृप्त है, नहीं देह का अभिमान है।
ऐसे विवेकी के लिए, सब हानि-लाभ समान है॥

- भोला बाबा

1253_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

गुरूभक्तियोग का अर्थ है
व्यक्तिगत भावनाओं,
इच्छाओं, समझ-बुद्धि एवं
निश्चयात्मक बुद्धि के
परिवर्तन द्वारा अहोभाव को
अनंत चेतना स्वरूप में
परिणत करना।

-श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती

Tuesday 30 September 2014

1252_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU


सुख-दुःखों की बौछारें होती रहें परन्तु वे आत्मज्ञानी को अपने स्वरूप से कभी विचलित नहीं कर सकतीं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 22 September 2014

1251_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



हजार बार असफल होने पर भी फिर से पुरुषार्थ कर, अवश्य सफलता मिलेगी। हिम्मत न हार। छोटा-छोटा नियम, छोटा-छोटा संयम का व्रत जीवन में लाते हुए आगे बढ़ और महान हो जा।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 21 September 2014

1250_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU




व्यवहार जगत के तूफान तो क्या, मौत का तूफान आये उससे भी टक्कर लेने का सामर्थ्य आ जाय इसका नाम है साक्षात्कार। इसका नाम है मनुष्य जीवन की सफलता।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 20 September 2014

1249_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

एकाग्रता और अनासक्ति ये – दो हथियार जिसके पास आ जायें, वह अनपढ़ हो चाहे साक्षर हो, धनवान हो चाहे निर्धन हो, सुप्रसिद्ध हो चाहे कुप्रसिद्ध हो, वह ब्रह्म-परमात्मा में टिक सकता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday 16 September 2014

1248_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



वक्षस्थल में जो ‘मै‘ का घुन लगा हुआ है । उसे परे फेंक दो और सारा संसार तुम्हारे सामने नत मस्तक होगा ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday 15 September 2014

1247_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



अपने आप को सदैव पूर्ण शांत और आनंद मग्न रखो । चाहे जैसी घटना हो उसमे व्याघात नही होना चाहिये ।भूख-प्यास ,रोग ,दुःख ,अपमान और मृत्यु ।सदैव प्रसन्नचित्त और शांत रहो ,क्योंकि तुम परमात्मा के अंश हो,परम तत्व हो ।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 13 September 2014

1246_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



जिसको आप भयानक घटनायें और भयंकर चोटें अनुमान किये बैठे हो ,वह वास्तव में तो तुम्हारे प्रियतम आत्मदेव ही की करतूतें है । सबकी सब डरावनी बातें और प्राण नाशक घटनायें रूप और आकार तो विष का रखती है मगर बनी हुयी मिश्री की हैं ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday 10 September 2014

1245_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

कर्मयोगी गंगा की तरह कर्म करता है और ज्ञानी हिमालय की तरह । अर्थात मनुष्य के कर्म में भाव की प्रधानता होती है और ज्ञानी के कर्म मे ज्ञान की प्रधानता होते है या ज्ञान ही ज्ञान होता है ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday 9 September 2014

1244_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU


हम सबकी फिक्र करने वाला इश्वर बैठा है । तब यह बोझा व्यर्थ ही हम क्यों ढोते फिरें ? हमें तो अपने हिस्से आया हुआ काम करते रहना है ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday 7 September 2014

1243_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

यदि लौकिक आसक्तियों और स्वार्थमयी इच्छाओं से आप अपने को आजाद कर लें ,सो फिर सत्य पाने की बात ही क्या है ? आप स्वंय इसी क्षण सत्य हैं ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

1242_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



ऐ महान ! अपनी सर्वशक्तिमान प्रकृति को उद्बुद्ध करो । तुम्हीं मे तो सारी शक्ति निहित है । देखोगे,यह सारी दुनियाँ,तुम्हारे पैरों पर लोटने लगेगी ।एक मात्र आत्मा ही शासन करती है ,जड़ पदार्थ क्या शासन करेगा ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday 6 September 2014

1241_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU


अपमान तो तुम्हारी आत्म ज्योति को जाग्रत करने वाला है ।तुम्हारी विस्मृति  को नष्ट करके स्मृति  को ताजी बनाने वाला है ।अपमान क्षोभ का नही ,प्रसाद का जनक है ।अपमान होते ही प्रसन्ता से खिल उठना चाहिए कि  मेरी स्मृति ताजी करने के लिए साक्षात भगवान स्वयं आये है ,महान सौभाग्य है ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday 4 September 2014

1240_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



तुम चाहे किसी की भी प्रार्थना करो,पर कौन आकर तुम्हें सहायता देगा ? जिसने स्वयं मृत्यु से छुटकारा नहीं पाया ,उससे तुम किस प्रकार सहायता की आशा कर सकते हो ? स्वयं ही अपना उद्धार करो , दूसरा कोई तुम्हें मदद नहीं पहुँचायेगा । तो फिर आत्मा का आश्रय लो । उठ खड़े हो ,डरो मत ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday 3 September 2014

1239_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



करोड़ों दुःख रूपी कीटाणु तुम्हारे आस-पास क्यों न घूमते रहें ,पर कुछ चिंता न करो । जब तक तुम्हारा मन कमजोर नही होता । तब तक उनकी हिम्मत नही कि वे तुम पर हमला करे । यह एक बड़ा सत्य है कि बल ही जीवन है और दुर्बलता ही मरण ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...