आलस
कबहुँ न कीजिए, आलस
अरि सम जानि।
आलस
से विद्या घटे, सुख-सम्पत्ति
की हानि।।
आलस्य और
प्रमाद
मनुष्य की
योग्याताओं
के शत्रु हैं।
अपनी योग्यता
विकसित करने
के लिए भी तत्परता
से कार्य करना
चाहिए। जिसकी
कम समय में
सुन्दर,
सुचारू व
अधिक-से-अधिक
कार्य करने की
कला विकसित
है, वह
आध्यात्मिक
जगत में जाता
है तो वहाँ भी
सफल हो जायगा
और लौकिक जगत
में भी। लेकिन
समय बरबाद
करने वाला,
टालमटोल करने
वाला तो
व्यवहार में
भी विफल रहता
है और परमार्थ
में तो सफल हो
ही नहीं सकता।Pujya Asharam Ji Bapu
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