Wednesday, 19 October 2011

जिस मनुष्य ने भगवत्प्रेमी
संतो के चरणों की धूल
कभी सिर पर नहीं चढ़ायी, वह
जीता हुआ भी मुर्दा है।
वह हृदय नहीं, लोहा है,
जो भगवान के
मंगलमय नामों का
श्रवण-कीर्तन करने पर भी
पिघलकर उन्हीं की ओर
बह नहीं जाता।
-          श्रीमदभागवत

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