निज आत्मरूप में जाग
हो गयी रहमत गुरु की, हरिनाम रस को पा लिया।
ध्यान-रंग में डुबा दिया, निज आत्मभाव में जगा दिया।।
लज्जत1 है नाम-रस में, पी ले तू बारम्बार।
गुरुचरणों में पा ले, प्रभुप्रेम की खुमार।।
कामना को त्याग दे, कर ईश में अनुराग।
गफलत में क्यों सो रहा, निज आत्मरूप में जाग।।
1 स्वाद
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