गलिते देहाध्यासे विज्ञाते परमात्मनि।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः।।
जब देहाध्यास गलित हो जाता है, परमात्मा का ज्ञान हो जाता है, तब जहाँ-जहाँ मन जाता है, वहाँ-वहाँ समाधि का अनुभव होता है, समाधि का आनन्द आता है।
देहाध्यास गलाने के लिए ही सारी साधनाएँ हैं। परमात्मा-प्राप्ति के लिये जिसको तड़प होती है, जो अनन्य भाव से भगवान को भजता है, 'परमात्मा से हम परमात्मा ही चाहते हैं.... और कुछ नहीं चाहते.....' ऐसी अव्यभिचारिणी भक्ति जिसके हृदय में है, उसके हृदय में भगवान ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं।
Pujya asharam ji bapu
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