Tuesday, 7 October 2014

1258_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~  जीवन को महान बनाना है तो.... ~~~~

शास्त्रकारों ने लिखा हैः

आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।

आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।

ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः

अतिसृष्टो अपां वृषभोઽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः। इदं तमति सृजामि तं माઽभ्यवनिक्षि।


ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है,  उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में  उल्लेख आता हैः

रुजन् परिरूजन् मृणन् प्रमृणन्।। म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।


ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)

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