सदगुरु मिटाते हैं। तू आनाकानी मत कर, अन्यथा तेरा परमार्थ का मार्ग लम्बा हो जायेगा। तू सहयोग कर। तू उनके चरणों में मिट जा और मालिक बन, सिर दे और सिरताज बन; अपना 'मैं' पना मिटा और मुर्शिद बन। तू अपना तुच्छ 'मैं' उनको दे दे और उनके सर्वस्व का मालिक बन जा। अपने नश्वर को ठोकर मार और उनसे शाश्वत का स्वर सुन। अपने तुच्छ जीवत्व को त्याग दे और शिवत्व में विश्राम कर।
Pujya asharam ji bapu
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