मुनिशार्दूल वशिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं- "जीव को अपना परम कल्याण करना हो तो प्रारम्भ में दो प्रहर (छः घण्टे) आजीविका के निमित्त यत्न करे और दो प्रहर साधुसमागम, सत्शास्त्रों का अवलोकन और परमात्मा का ध्यान करें। प्रारम्भ में जब आधा समय ध्यान, भजन और शास्त्र विचार में लगायेगा तब उसकी अंतरचेतना जागेगी। फिर उसे पूरा समय आत्म-साक्षात्कार या ईश्वर-प्राप्ति में लगा देना चाहिए।"
श्रीकृष्ण ने गीता में भी कहाः
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ।।
'जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्त्तव्य नहीं है।'
(भगवद् गीताः ३-१७)
Pujya asharam ji bapu
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