वह संगति जल जाय जिसमें कथा नहीं राम की।
बिन खेती के बाढ़ किस काम की।।
वे नूर बेनूर भले जिस नूर में पिया की प्यास नहीं। वह मति दुर्मति है जिस मति में परमात्मा की तड़प नहीं। वह जीवन व्यर्थ है जिस जीवन में ईश्वर के गीत गूँज न पाये। वह धन केवल परिश्रम है, बोझा है जो धन आत्मधन कमाने में काम न आये। वह मन तुम्हारा शत्रु है जिस मन के द्वारा तुम अपने मालिक से न मिल पाओ। वह तन तुम्हारा शत्रु है जिस तन से तुम परमात्मा की ओर न चल पाओ। ऐसा जिनका अनुभव होता है वे साधक ही ज्ञान के अधिकारी होते हैं।
Pujya asharam ji bapu
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