Sunday, 2 December 2012

945_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU


कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थासु सर्वदा।
सर्वत्र मैथुनत्यागो ब्रह्मचर्यं प्रचक्षते।।
ʹसर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं।ʹ (याज्ञवल्क्य संहिता)

भगवान वेदव्यासजी ने कहा है :
ब्रह्मचर्यं गुप्तेन्द्रिस्योपस्थस्य संयमः |
विषय-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले सुख का संयमपूर्वक त्याग करना ब्रह्मचर्य है |

भगवान शंकर कहते हैं :
सिद्धे बिन्दौ महादेवि किं न सिद्धयति भूतले |
हे पार्वत! बिन्दु अर्थात वीर्यरक्षण सिद्ध होने के बाद कौन-सी सिद्धि है, जो साधक को प्राप्त नहीं हो सकती ?

 -Pujya Asharam Ji Bapu

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