ज्ञानी बोलते हुए भी नहीं बोलते, लेते हुए भी नहीं लेते, देते हुए भी नहीं देते।
यह
ज्ञानवानों
का नित्य मौन
है। इसको ‘वेदान्ती
मौन’
कह सकते हैं।
आत्मस्वरूप
में,
ब्रह्मस्वरूप
में जागे हुए
बोधवान्
ज्ञानी पुरुष
खाते-पीते,
उठते-बैठते,
चलते-फिरते सब
कुछ करते हुए
भी भली प्रकार
समझते
हैं किः 'बोला
जाता है वाणी
से, लिया-दिया
जाता है हाथ से,
चला जाता है
पैर से,
संकल्प-विकल्प होते
हैं मन से,
निर्णय होते
हैं बुद्धि
से। मैं इन
सबको
देखनेवाला,
अचल, कूटस्थ,
साक्षी हूँ।
मैंने कभी कुछ
किया ही नहीं।'
-Pujya Asharam Ji Bapu

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