इन वेदवचनों को केवल मान लो नहीं, उनकी सत्यता का अनुभव करते चलो। 'मैं वह आनंदस्वरूप आत्मा हूँ...' चार वेद के चार महावाक्य हैं-
प्रज्ञानं ब्रह्म। अयं आत्मा ब्रह्म। अहं ब्रह्मास्मि। तत्त्वमसि। इन वेदवाक्यों का तात्पर्य यही है।
नानकदेव भी कहते हैं-
सो प्रभ दूर नहीं... प्रभ तू है।
सो साहेब सद सदा हजूरे।
अन्धा जानत ता को दूरे।।
तुलसीदास जी कहते हैं-
घट में है सूझे नहीं, लानत ऐसे जिन्द।
तुलसी ऐसे जीव को, भयो मोतियाबिन्द।।Pujya asharam ji bapu satsang :_
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.