हे राम जी ! यथायोग्य व्यवहार करो लेकिन चित्त से सदा आत्मपद में स्थिति करो। चित्त में एक बार आत्म-शान्ति का स्वाद आ जाये तो फिर संसार में कोई सुख तुम्हें प्रभावित नहीं करेगा।"
जैसे अमृत तैसे विष घाटी।
जैसा मान तैसा अपमाना।।
हर्ष शोक जाँके नहीं वैरी मीत समान।
कह नानक सुन रे मना मुक्त ताँहि ते जान।।
एक बार चित्त परमात्म-शान्ति का अनुभव करे फिर तुम्हारे चित्त में, तुम्हारे अन्तःकरण में संसार की सत्यता नष्ट हो जायगी।
Pujya asharam ji bapu Satsang:_
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