Sunday, 13 November 2011

जिस प्रकार एक धागे में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ फूल पिरोये हुए हैं, उसी प्रकार मेरे आत्मस्वरूप में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ शरीर पिरोये हुए हैं | जैसे फूलों की गुणवत्ता का प्रभाव धागे पर नहीं पड़ता, वैसे ही शरीरों की गुणवत्ता का प्रभाव मेरी सर्वव्यापकता नहीं पड़ता | जैसे सब फूलों के विनाश से धागे को कोई हानि नहीं, वैसे शरीरों के विनाश से मुझ सर्वगत आत्मा को कोई हानि नहीं होती |
Pujya asaram ji bapu :-

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