जब-जब दुःख आ जाय, चिन्ता आ जाय, शोक आ जाय, भय आ जाय तो उस समय इतना तो जरूर समझ लें कि हमने ईश्वरीय विधान का कोई-न-कोई अनादर किया है। ईश्वर अपमान कराके हमें समतावान बनाना चाहते हैं और हम अपमान पसन्द नहीं करते हैं। यह ईश्वर का अनादर है। ईश्वर हमें मित्र देकर उत्साहित करना चाहते हैं लेकिन हम मित्रों की ममता में फँसते हैं इसलिए दुःख होता है। ईश्वर हमें धन देकर सत्कर्म कराना चाहते हैं लेकिन हम धन को पकड़ रखना चाहते हैं इसलिए 'टेन्शन' (तनाव) बढ़ जाता है। ईश्वर हमें कुटुम्ब-परिवार देकर इस संसार की भूलभुलैया से जागृत होने को कह रहे हैं लेकिन हम खिलौनों से खेलने लग जाते हैं तो संसार की ओर से थप्पड़ें पड़ती हैं।
Pujya asaram ji bapu
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