Sunday 20 November 2011

भारत का आत्मज्ञान एक ऐसी कुंजी है जिससे सब विषयों के ताले खुल जाते हैं। संसार की ही नहीं, जन्म मृत्यु की समस्याएँ भी खत्म हो जाती हैं। लेकिन इस परमात्मस्वरूप के वे ही अधिकारी हैं जिनकी प्रीति भगवान में हो। भोगों में जिनकी प्रीति होती है और मिटने वाले का आश्रय लेते हैं ऐसे लोगों के लिए परमात्मस्वरूप अपना आपा होते हुए भी पराया हो जाता है और भोगों में जिनकी रूचि नहीं है, मिटनेवाले को मिटनेवाला समझते हैं एवं अमिट की जिज्ञासा है वे अपने परमात्मस्वरूप को पा लेते हैं। यह परमात्मस्वरूप कहीं दूर नहीं है। भविष्य में मिलेगा ऐसा भी नहीं है.... साधक लोग इस आत्मस्वरूप को पाने के लिए अपनी योग्यता बढ़ाते हैं। जो अपने जीवन का मूल्य समझते हैं ऐसे साधक अपनी योग्यता एवं बुद्धि का विकास करके, प्राणायाम आदि करके, साधन-भजन-जपादि करके परमात्म-स्वरूप को पाने के काबिल भी हो जाते हैं।
 Pujya asaram ji bapu :-


















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