जैसे
हरी लता पर
बैठने वाला
कीड़ा लता की
भाँति हरे रंग
का हो जाता है,
उसी प्रकार
विषय-विकार
एवं कुसंग से
मन मलिन हो
जाता है।
इसलिए
विषय-विकारों
और कुसंग से
बचने के लिए
संतों का संग
अधिकाधिक
करना चाहिए।
कबीर जी ने
कहाः
संगत
कीजै साधु की,
होवे दिन-दिन
हेत।
साकुट
काली कामली,
धोते होय न
सेत।।
कबीर
संगत साध की,
दिन-दिन दूना
हेत।
साकत
कारे कानेबरे,
धोए होय न
सेत।।
अर्थात्
संत-महापुरूषों
की ही संगति
करनी चाहिए क्योंकि
वे अंत में
निहाल कर देते
हैं। दुष्टों
की संगति नहीं
करनी चाहिए
क्योंकि उनके
संपर्क में
जाते ही
मनुष्य का पतन
हो जाता है।
संतों
की संगति से
सदैव हित होता
है, जबकि दुष्ट
लोगों की
संगति गुणवान
मनुष्यों का
भी पतन हो
जाता है।
-Pujya asharam ji bapu
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