मनुष्य की
वास्तविक
अंतरात्मा
इतनी महान् है
कि जिसका
वर्णन करते
वेद भगवान भी 'नेति....
नेति.....'
पुकार देते
हैं। मानव का
वास्तविक
तत्त्व,
वास्तविक
स्वरूप ऐसा
महान् है लेकिन
भय ने,
स्वार्थ ने,
रजो-तमोगुण के
प्रभाव ने उसे
दीन-हीन बना
दिया है।
-Pujya asharam ji bapu
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