जैसे स्वप्न-जगत जाग्रत होने के बाद मिथ्या लगता है वैसे ही यह जाग्रत जगत अपने आत्मदेव को जानने से मिथ्या हो जाता है। जिसकी सत्ता लेकर यह जगत् बना है अथवा भासमान हो रहा है उस आत्मा को जान लेने से मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है।गुरुदेव जो देना चाहते हैं वह कोई ऐरा-गैरा पदार्थ टिक नहीं सकता है। इसलिए सदगुरु अपने प्यारे शिष्य को चोट मार मारकर मजबूत बनाते हैं, कसौटियों में कसकर योग्य बनाते हैं।प्रभु.....तु मेरा और में तेरा हु.ॐ नमो भगवते वासुदेवाय.........
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