Wednesday, 26 October 2011

ऐ गाफिल ! न समझा था , मिला था तन रतन तुझको ।
मिलाया खाक में तुने, ऐ सजन ! क्या कहूँ तुझको ?
अपनी वजूदी हस्ती में तू इतना भूल मस्ताना
अपनी अहंता की मस्ती में तू इतना भूल मस्ताना
करना था किया वो न, लगी उल्टी लगन तुझको ॥
ऐ गाफिल ……
जिन्होंके प्यार में हरदम मुस्तके दीवाना था
जिन्होंके संग और साथ में भैया ! तू सदा विमोहित था
आखिर वे ही जलाते हैं करेंगे या दफन तुझको ॥
ऐ गाफिल
शाही और गदाही क्या ? कफन किस्मत में आखिर ।
मिले या ना खबर पुख्ता ऐ कफन और वतन तुझको ॥
                                   ऐ गाफिल ……

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