एक आदमी आपको दुर्जन कहकर परिच्छिन्न करता है तो दूसरा आपको सज्जन कहकर भी परिच्छिन्न ही करता है | कोई आपकी स्तुति करके फुला देता है तो कोई निन्दा करके सिकुड़ा देता है | ये दोनों आपको परिच्छिन्न बनाते हैं | भाग्यवान् तो वह पुरूष है जो तमाम बन्धनों के विरूद्ध खड़ा होकर अपने देवत्व की, अपने ईश्वरत्व की घोषणा करता है, अपने आत्मस्वरूप का अनुभव करता है | जो पुरुष ईश्वर के साथ अपनी अभेदता पहचान सकता है और अपने इर्दगिर्द के लोगों के समक्ष, समग्र संसार के समक्ष निडर होकर ईश्वरत्व का निरूपण कर सकता है, उस पुरूष को ईश्वर मानने के लिये सारा संसार बाध्य हो जाता है | पूरी सृष्टि उसे अवश्य परमात्मा मानती है |
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
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