~~~~ उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ ~~~~
जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।
उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।
ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

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