कबीर जी ने कहाः
कबीरा निन्दक ना मिलो पापी मिलो हजार।
एक निन्दक के माथे पर लाख पापीन को भार।।
विवेकानन्द कहते थेः 'तुम किसी का मकान छीन लो यह पाप तो है लेकिन इतना नहीं। वह घोर पाप नहीं है। किसी के रूपये छीन लेना पाप है लेकिन किसी की श्रद्धा की डोर तोड़ देना यह सबसे बड़ा घोर पाप है क्योंकि उसी श्रद्धा से वह शांति पाता था, उसी श्रद्धा के सहारे वह भगवान के तरफ जाता था।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
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