सच्चा भक्त अपने किसी अनिष्टकी
आशङ्कासे सन्मार्गका ईश्वर-सेवाका
कदापि त्याग नहीं करता।तन,मन,धन
सभी कुछ प्रभुकी ही तो सम्पति है,फिर
उन्हें प्रभुके काममें लगा देनेमें अनिष्ट
कैसा?इसीसे यदि असहाय रोगीकी सेवा
करते-करते भक्तके प्राण चले जाते हैं
या भूखे-गरीबोंका पेट भरनेमें भक्तकी
सारी समपति स्वाहा हो जाते है तो वह
अपने को बड़ा भाग्यवान समझता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
आशङ्कासे सन्मार्गका ईश्वर-सेवाका
कदापि त्याग नहीं करता।तन,मन,धन
सभी कुछ प्रभुकी ही तो सम्पति है,फिर
उन्हें प्रभुके काममें लगा देनेमें अनिष्ट
कैसा?इसीसे यदि असहाय रोगीकी सेवा
करते-करते भक्तके प्राण चले जाते हैं
या भूखे-गरीबोंका पेट भरनेमें भक्तकी
सारी समपति स्वाहा हो जाते है तो वह
अपने को बड़ा भाग्यवान समझता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
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