यज्ञार्थ कर्म
आँखों को बुरी जगह जाने नहीं देना यह आँखों की सेवा है। वाणी को व्यर्थ
नहीं खर्चना यह वाणी की सेवा है। मन को व्यर्थ चिन्तन से बचाना यह मन
की सेवा है। बुद्धि को राग-द्वेष से बचाना यह बुद्धि की सेवा है। अपने को
स्वार्थ से बचाना यह अपनी सेवा है और दूसरों की ईर्ष्या या वासना का
शिकार न बनाना यह दूसरों की सेवा है। इस प्रकार का यज्ञार्थ कर्म कर्त्ता
को परमात्मा से मिला देता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
आँखों को बुरी जगह जाने नहीं देना यह आँखों की सेवा है। वाणी को व्यर्थ
नहीं खर्चना यह वाणी की सेवा है। मन को व्यर्थ चिन्तन से बचाना यह मन
की सेवा है। बुद्धि को राग-द्वेष से बचाना यह बुद्धि की सेवा है। अपने को
स्वार्थ से बचाना यह अपनी सेवा है और दूसरों की ईर्ष्या या वासना का
शिकार न बनाना यह दूसरों की सेवा है। इस प्रकार का यज्ञार्थ कर्म कर्त्ता
को परमात्मा से मिला देता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
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