चाँद सफ़र में, सितारे सफ़र में ।
हवाएं सफ़र में, दरियाके किनारे सफ़र में ।
अरे साधक ! जहाँ की हर चीज सफ़र में ।
तो आप बेसफ़र कैसे रह सकते हैं ?
अभी तो जिसे तुम जीवन कहते हो वह जीवन नहीं और जिसे मृत्यु कहते हो वह मौत नहीं है । केवल प्रकृति मे परिवर्तन हो रहा है ।आप जिस शरीर को 'में' मानते हैं वह शरीर भी परिवर्तन की धारा मे बह रहा है । प्रतिदिन शरीर के पुराने कोस नष्ट हो रहे हैं और उनकी जगह नए कोस बनते जा रहे हैं । इस स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर का वियोग होता है अर्थात सूक्ष्म शरीर देहरूपी वस्त्र बदलता है इसको लोग मौत कहते हैं और शोक मे फुट-फुटकर रोते हैं ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
हवाएं सफ़र में, दरियाके किनारे सफ़र में ।
अरे साधक ! जहाँ की हर चीज सफ़र में ।
तो आप बेसफ़र कैसे रह सकते हैं ?
अभी तो जिसे तुम जीवन कहते हो वह जीवन नहीं और जिसे मृत्यु कहते हो वह मौत नहीं है । केवल प्रकृति मे परिवर्तन हो रहा है ।आप जिस शरीर को 'में' मानते हैं वह शरीर भी परिवर्तन की धारा मे बह रहा है । प्रतिदिन शरीर के पुराने कोस नष्ट हो रहे हैं और उनकी जगह नए कोस बनते जा रहे हैं । इस स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर का वियोग होता है अर्थात सूक्ष्म शरीर देहरूपी वस्त्र बदलता है इसको लोग मौत कहते हैं और शोक मे फुट-फुटकर रोते हैं ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
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