किसी भी अवस्था में मन को व्यथित होने मत दो । आत्मा पर विश्वास कर उसी पर निर्भर हो जाओ । फिर निर्भयता तो तुम्हारी दासी बन जायेगी । -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
वास्तविक शिक्षा तो उस समय प्रारंभ होती है ,जब मनुष्य सभी प्रकार की बाह्य सहायताओं से मुंह मोडकर अपने अंतर के अनन्त स्रोत की ओर अग्रसर होता है । -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
मन में
यदि भय न हो तो बाहर
चाहे कैसी भी भय
की सामग्री उपस्थित
हो जाये, आपका
कुछ बिगाड़ नहीं
सकती | मन में यदि भय
होगा तो तुरन्त
बाहर भी भयजनक
परिस्थियाँ न होते
हुए भी उपस्थित
हो जायेंगी | वृक्ष
के तने में भी भूत
दिखने लगेगा |
ज्ञानी को शत्रु से द्वेष नहीं, मित्र से राग
नहीं । ज्ञानी को मौत का भय नहीं,नाश
का ड़र नहीं, जीने की वासना नहीं, सुख
की इच्छा नहीं और दुख से द्वेष नहीं
क्योंकि वह जानता है यह सब मन में
रहता है और मन एक मिथ्या कल्पना है ।
हे
भारत के
सपूतो-सुपुत्रियो
! तुम
हिम्मत मत
हारना, निराश
मत होना। अगर
कभी असफल भी
हुए तो हताश
मत होना वरन्
पुनः प्रयास
करना।
तुम्हारे लिए
असम्भव कुछ भी
नहीं होगा। ૐ.... ૐ.... ૐ.... -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
जिस प्रकार अग्नि के पास बैठने
से ठंड, भय, अंधकार दूर होते हैं
उसी प्रकार सदगुरु के सान्निध्य में
रहने से अज्ञान, मृत्यु का भय और
सब अनिष्ट दूर होते हैं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
व्यवहार में चिन्तारूपी राक्षसी घूमा करती है। वह उसी को ग्रस लेती है, जिसको जगत सच्चा लगता है। जिसको जगत स्वप्नवत लगता है, उसे परिस्थितियाँ और चिन्ताएँ कुचल नहीं सकती।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu