Wednesday, 30 November 2011
Tuesday, 29 November 2011
Monday, 28 November 2011
Sunday, 27 November 2011
8_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जिसने बाँटा उसने पाया। जिसने सँभाला उसने गँवाया।
तालाब और नदी के बीच बात चली। तालाब कहता हैः
"पगली ! कलकल छलछल करती, गाती गुनगुनाती भागी जा रही है सागर के पास। तुझे वह क्या देगा ? तेरा सारा मीठा जल ले लेगा और खारा बना डालेगा। जरा सोच, समझ। अपना जल अपने पास रख। काम आयगा।"
नदी कहती हैः "मैं कल की चिन्ता नहीं करती। जीवन है बहती धारा। बहती धारा को बहने ही दो।"
तालाब ने खूब समझाया लेकिन सरिता ने माना नहीं। तालाब ने तो अपना पानी संग्रह करके रखा। ऐसे ऐसे मच्छों को, मगरों को रख दिये अपने भीतर कि कोई भीतर आ ही न सके, स्नान भी न कर सके, डर के मारे पानी पीने भी न आ सके।
कुछ समय के बाद तालाब का बँधियार पानी गंदा हुआ, उसमें सेवार हो गई, मच्छर बढ़ गये, गाँव में मलेरिया फैल गया। गाँव के लोगों ने और नगर पंचायत ने मिलकर तालाब को भर दिया।
उधर सरिता तो बहती रही। सागर में अपना नाम-रूप मिटाकर मिल गई। अपने को मैं सागर हूँ ऐसा एहसास करने लगी। उसी सागर से जल उठा, वाष्प बना, वर्षा हुई और नदी ताजी की ताजी बहती रही। 'गंगे हर.... यमुने हर.... नर्मदे हर...' जय घोष होता रहा।
Pujya asharam ji bapu :-
Saturday, 26 November 2011
Friday, 25 November 2011
Thursday, 24 November 2011
Wednesday, 23 November 2011
दुनियावाले ने दुनिया ऐसी बनायी है।
हजारों खुशियाँ होते हुए आख्रिर रूलाई है।।
कितनी भी खुशियाँ भोगो लेकिन आखिर क्या? खुशी मन को होती है। जब तक तन और मन से पार नहीं गये तब तक खुशी और गम पीछा नहीं छोड़ेंगे।
अंतःकरण की मलिनता मिटाने के लिए निष्काम कर्म है। निष्काम कर्म से अंतःकरण शुद्ध होता है। उपासना से चित्त का विक्षेप दूर होता है। ज्ञान से अज्ञान दूर होता है। फिर आदमी विकास की पराकाष्ठा पर पहुँचता है।
Pujya asaram ji bapu :-चालू व्यवहार में से एकदम उपराम होकर दो मिनट के लिए विराम लो | सोचो कि ‘ मैं कौन हूँ ? सर्दी-गर्मी शरीर को लगती है | भूख-प्यास प्राणों को लगती है | अनुकूलता-प्रतिकूलता मन को लगती है | शुभ-अशुभ एवं पाप-पुण्य का निर्णय बुद्धि करती है | मैं न शरीर हूँ, न प्राण हूँ, न मन हूँ, न बुद्धि हूँ | मैं तो हूँ इन सबको सत्ता देने वाला, इन सबसे न्यारा निर्लेप आत्मा |’
Pujya asaram ji bapu :-Monday, 21 November 2011
पवित्रता और सच्चाई, विश्वास और भलाई से भरा हुआ मनुष्य उन्नति का झण्डा हाथ में लेकर जब आगे बढ़ता है तब किसकी मजाल कि बीच में खड़ा रहे ? यदि आपके दिल में पवित्रता, सच्चाई और विश्वास है तो आपकी दृष्टि लोहे के पर्दे को भी चीर सकेगी | आपके विचारों की ठोकर से पहाड़-के-पहाड़ भी चकनाचूर हो सकेंगे |
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Sunday, 20 November 2011
जो ईश्वर सर्वदा है वह अभी भी है। जो सर्वत्र है वह यहाँ भी है। जो सबमें है वह आपमें भी है। जो पूरा है वह आपमें भी पूरे का पूरा है। जैसे, आकाश सर्वदा, सर्वत्र, सबमें और पूर्ण है। घड़े में आकाश घड़े की उपाधि के कारण घटाकाश दिखता है और मठ का आकाश मठ की उपाधि होते हुए भी वह महाकाश से मिला जुला है। ऐसे ही आपके हृदय में, आपके घट में जो घटाकाशरूप परमात्मा है वही परमात्मा पूरे-का-पूरा अनंत ब्रह्माण्डों में है। ऐसा समझकर यदि उस परमात्मा को प्यार करो तो आप परमात्मा के तत्त्व को जल्दी समझ जाओगे।
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
भारत का आत्मज्ञान एक ऐसी कुंजी है जिससे सब विषयों के ताले खुल जाते हैं। संसार की ही नहीं, जन्म मृत्यु की समस्याएँ भी खत्म हो जाती हैं। लेकिन इस परमात्मस्वरूप के वे ही अधिकारी हैं जिनकी प्रीति भगवान में हो। भोगों में जिनकी प्रीति होती है और मिटने वाले का आश्रय लेते हैं ऐसे लोगों के लिए परमात्मस्वरूप अपना आपा होते हुए भी पराया हो जाता है और भोगों में जिनकी रूचि नहीं है, मिटनेवाले को मिटनेवाला समझते हैं एवं अमिट की जिज्ञासा है वे अपने परमात्मस्वरूप को पा लेते हैं। यह परमात्मस्वरूप कहीं दूर नहीं है। भविष्य में मिलेगा ऐसा भी नहीं है.... साधक लोग इस आत्मस्वरूप को पाने के लिए अपनी योग्यता बढ़ाते हैं। जो अपने जीवन का मूल्य समझते हैं ऐसे साधक अपनी योग्यता एवं बुद्धि का विकास करके, प्राणायाम आदि करके, साधन-भजन-जपादि करके परमात्म-स्वरूप को पाने के काबिल भी हो जाते हैं।
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Saturday, 19 November 2011
पारिवारिक मोह और आसक्ति से अपने को दूर रखो। अपने मन में यह दृढ़ संकल्प करके साधनापथ पर आगे बढ़ो कि यह मेरा दुर्लभ शरीर न स्त्री-बच्चों के लिए है, न दुकान-मकान के लिए है और न ही ऐसी अन्य तुच्छ चीजों के संग्रह करने के लिए है। यह दुर्लभ शरीर आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए है। मजाल है कि अन्य लोग इसके समय और सामर्थ्य को चूस लें और मैं अपने परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार से वंचित रह जाऊँ? बाहर के नाते-रिश्तों को, बाहर के सांसारिक व्यवहार को उतना ही महत्त्व दो जहाँ तक कि वे साधना के मार्ग में विघ्न न बनें। साधना मेरा प्रमुख कर्त्तव्य है, बाकी सब कार्य गौण हैं – इस दृढ़ भावना के साथ अपने पथ पर बढ़ते जाओ।
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Thursday, 17 November 2011
आप ही इस जगत के ईश्वर हो | आपको कौन दुर्बल बना सकता है ? जगत में आप ही एकमात्र सत्ता हो | आपको किसका भय ? खड़े हो जाओ | मुक्त हो जाओ | ठीक से समझ लो कि जो कोई विचार या शब्द आपको दुर्बल बनाता है, वही एकमात्र अशुभ है | मनुष्य को दुर्बल व भयभीत करनेवाला जो कुछ इस संसार में है, वह पाप है |
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Tuesday, 15 November 2011
एकाग्रता और भगवददर्शन
जिस मूर्ति को गौरांग निहारते थे उस जगन्नाथजी को औरों ने भी निहारा था। लेकिन गौरांग की इतनी एकाग्रता थी कि वे सशरीर उसी मूर्ति में समा गये। जिस मूर्ति को मीराजी देखती थी उस मूर्ति को और लोग भी देखते थे। लेकिन मीरा की एकाग्रता ने अदभुत चमत्कार कर दिया। धन्ना जाट ने सिलबट्टा पाया पण्डित से। जिस सिलबट्टे से पण्डित रोज भाँग रगड़ता था वही सिलबट्टा धन्ना जाट की दृष्टि में ठाकुरजी बना और पूजा में रखा गया। धन्ना जाट की इतनी एकाग्रता हुई कि ठाकुर जी को उसी सिलबट्टे में से प्रकट होना पड़ा। काले कुत्ते को अनेक यात्रियों ने देखा। नामदेव भी एक यात्री थे। अलग-अलग तम्बू लगाकर यात्री लोग भोजन बना रहे थे। कुत्ते को आया देखकर कोई बोलाः यह अपशकुन है। किसी ने कहाः काला कुत्ता तो शकुन माना जाता है। वे लोग कुत्ते की चर्चा कर रहे थे और इतने में कुत्ता नामदेव की रोटी लेकर भागा। कुत्ते में भी भगवान को निहारनेवाले भक्त नामदेव घी की कटोरी लेकर पीछे भागे। सबमें भगवान को निहारने की उनकी इतनी एकाग्रता थी, इतनी दृढ़ता थी कि उस कुत्ते में से भगवान को प्रकट होना पड़ा।
Pujya asaram ji bapu :-
Sunday, 13 November 2011
जिस प्रकार एक धागे में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ फूल पिरोये हुए हैं, उसी प्रकार मेरे आत्मस्वरूप में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ शरीर पिरोये हुए हैं | जैसे फूलों की गुणवत्ता का प्रभाव धागे पर नहीं पड़ता, वैसे ही शरीरों की गुणवत्ता का प्रभाव मेरी सर्वव्यापकता नहीं पड़ता | जैसे सब फूलों के विनाश से धागे को कोई हानि नहीं, वैसे शरीरों के विनाश से मुझ सर्वगत आत्मा को कोई हानि नहीं होती |
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Friday, 11 November 2011
खबरदार ! जो समय गुरु-सेवन, ईश्वर-भक्ति और सत्संग में लगाना है, वह यदि जड़ पदार्थों में लगाया तो तुम भी जड़ीभाव को प्राप्त हो जाओगे। तुमने अपना सामर्थ्य, शक्ति, पैसा और सत्ता अपने मित्रों व सम्बन्धियों में ही मोहवश लगाया तो याद रखो, कभी-न-कभी तुम ठुकराये जाओगे, दुःखी बनोगे और तुम्हारा पतन हो ही जायेगा।
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
किसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुच्छ विषयों की माँग मत करो। विषयों की माँग कोई भी हो, तुम्हें दीन बना देगी। विषयों की दीनतावालों को भगवान नहीं मिलते। नाऽयमात्मा बलहीनेन लभ्यः।
इसलिए भगवान की पूजा करनी हो तो भगवान बनकर करो। देवो भूत्वा देवं यजेत्।
जैसे भगवान निर्वासनिक हैं, निर्भय हैं, आनन्दस्वरूप हैं, ऐसे तुम भी निर्वासनिक और निर्भय होकर आनन्द में रहो। यही उसकी महा पूजा है।Pujya asaram ji bapu :-
दीनता-हीनता पाप है। तुम तो मौत से भी निर्भयतापूर्वक कहोः ‘ऐ मौत ! मेरे शरीर को छीन सकती है, पर मेरा कुछ नहीं कर सकती। तू क्या डरायेगी मुझे? ऐ दुनिया की रंगीनियाँ ! संसार के प्रलोभनो ! तुम मुझे क्या फँसाओगे? तुम्हारी पोल मैंने जान ली है। ऐ दुनिया के रीत-रिवाजो ! सुख-दुःखो ! अब तुम मुझे क्या नचाओगे? अब लाख-लाख काँटों पर भी मैं निर्भयतापूर्वक कदम रखूँगा। हजार-हजार उत्थान और पतन में भी मैं ज्ञान की आँख से देखूँगा। मुझ आत्मा को कैसा भय? मेरा कुछ न बिगड़ा है न बिगड़ेगा। शाबाश है ! शाबाश है !! शाबाश है !!!
Pujya asaram ji bapu :-
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