Tuesday, 30 December 2014
Monday, 22 December 2014
Thursday, 11 December 2014
Wednesday, 10 December 2014
Tuesday, 9 December 2014
Thursday, 27 November 2014
1281_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
...सब हानि-लाभ समान है
निजानंद में मग्न आत्मज्ञानी संत पुरुषों को भला निंदा-स्तुति कैसे प्रभावित कर सकती है? वे तो सदैव ही उस अनंत परमात्मा के अनंत आनंद में निमग्न रहते हैं। वे महापुरुष उस पद में प्रतिष्ठित होते हैं जहाँ इन्द्र का पद भी छोटा हो जाता है।
इन्द्र का वैभव भी तुच्छ समझने वाले ऐसे संत, जगत में कभी-कभी, कहीं-कहीं, विरले ही हुआ करते हैं। समझदार तो उनसे लाभ उठाकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा तय कर लेते हैं, परंतु उनकी निंदा करने-सुनने वाले तथा उनको सताने वाले दुष्ट, अभागे, असामाजिक तत्त्व कौन सी योनियों में, कौन सी नरक में पच रहे होंगे यह हम नहीं जानते। ॐ
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
निजानंद में मग्न आत्मज्ञानी संत पुरुषों को भला निंदा-स्तुति कैसे प्रभावित कर सकती है? वे तो सदैव ही उस अनंत परमात्मा के अनंत आनंद में निमग्न रहते हैं। वे महापुरुष उस पद में प्रतिष्ठित होते हैं जहाँ इन्द्र का पद भी छोटा हो जाता है।
इन्द्र का वैभव भी तुच्छ समझने वाले ऐसे संत, जगत में कभी-कभी, कहीं-कहीं, विरले ही हुआ करते हैं। समझदार तो उनसे लाभ उठाकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा तय कर लेते हैं, परंतु उनकी निंदा करने-सुनने वाले तथा उनको सताने वाले दुष्ट, अभागे, असामाजिक तत्त्व कौन सी योनियों में, कौन सी नरक में पच रहे होंगे यह हम नहीं जानते। ॐ
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
1280_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
वेदान्त शास्त्र यह नहीं कहता कि ‘अपने आपको जानो ।’ अपने आपको सभी जानते हैं । कोई अपने को निर्धन जानकर धनी होने का प्रयत्न करता है, कोई अपनेको रोगी जानकर निरोग होने को इच्छुक है । कोई अपनेको नाटा जानकर लम्बा होने के लिए कसरत करता है तो कोई अपनेको काला जानकर गोरा होने के लिए भिन्न भिन्न नुस्खे आजमाता है ।
नहीं, वेदान्त यह नहीं कहता । वह तो कहता है : ‘अपने आपको ब्रह्म जानो ।’ जीवन में अनर्थ का मूल सामान्य अज्ञान नहीं अपितु अपनी आत्मा के ब्रह्मत्व का अज्ञान है । देह और सांसारिक व्यवहार के ज्ञान अज्ञान से कोई खास लाभ हानि नहीं है परंतु अपने ब्रह्मत्व के अज्ञान से घोर हानि है और उसके ज्ञान से परम लाभ है ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Monday, 17 November 2014
1279_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~ .....नहीं तो सिर धुन-धुनकर पछताना पड़ेगा ~~~~~~~
संसार के जिन-जिन पदार्थों, वस्तुओं आदि को हम अपना मान रहे हैं, वे हमारे नहीं हैं, उनसे हमारा वियोग अवश्यंभावी है। अतएव उनके संग्रह, संरक्षण में ईश्वर को भुला देना उचित नहीं। परमात्मा की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले कर्मों के अतिरिक्त सभी कर्म व्यर्थ अथवा अनर्थ हैं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
संसार के जिन-जिन पदार्थों, वस्तुओं आदि को हम अपना मान रहे हैं, वे हमारे नहीं हैं, उनसे हमारा वियोग अवश्यंभावी है। अतएव उनके संग्रह, संरक्षण में ईश्वर को भुला देना उचित नहीं। परमात्मा की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले कर्मों के अतिरिक्त सभी कर्म व्यर्थ अथवा अनर्थ हैं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Sunday, 16 November 2014
1278_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~निन्दा-स्तुति की उपेक्षा करें~~~~~~
निन्दा और अपमान की परवाह न करें। निर्भय रहें। प्रसन्न रहें। अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहें। जो डरता है उसी को दुनिया डराती हैं। यदि आपमें डर नहीं है, आप निर्भय हैं तो काल भी आपका बाल बाँका नहीं कर सकता। जो आत्मदेव में श्रद्धा रखकर निर्भयता से व्यवहार करता है वह सफलतापूर्वक आगे बढ़ता जाता है। उसे कोई रोक नहीं सकता। वह अपनी मंजिल तय करके ही रहता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Saturday, 15 November 2014
1277_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~ उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ ~~~~
जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।
उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।
ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Friday, 14 November 2014
Thursday, 13 November 2014
1275_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
हरि गुरु साध समान चित्त, नित आगम तत मूल।
इन बिच अंतर जिन परौ, करवत सहन कबूल ॥
समस्त शास्त्रों का सदैव यही मूल उपदेश है कि भगवान, गुरु और संत इन तीनों का चित्त एक समान (ब्रह्मनिष्ठ) होता है। उनके बीच कभी अंतर न समझें, ऐसी दृढ़ अद्वैत दृष्टि रखें फिर चाहे आरे से इस शरीर कट जाने का दंड भी क्यों न सहन करना पडे़ ।
-संत रैदास जी
Tuesday, 11 November 2014
Sunday, 9 November 2014
1273_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~ हो गई रहेमत तेरी...... ~~~~~~~
हे प्यारे सदगुरू परमात्मा ! मुझे अपनी आत्म-मस्ती में थाम लो। मैं संसारियों के अज्ञान में कहीं बदल न जाऊँ। मोह-ममता में कहीं फिसल न जाऊँ।
जेसीं जिय जान रहे जेसीं तन में प्राण रहे।
प्रीत संधी डोरी तो पासे सरधी रहे।।
डप आहे मुखे इहो वञ्जों मतां तो खां मां विछड़ी।
अञां प्रीत संधी डोरी सजण आहे कचड़ी।।
जोरसां जलजा अञां नंढडो ही बालक।।
तब तक जी में जान है, तन में प्राण है तब तक मेरी साधना की डोरी, मेरी प्रीति की डोरी तेरी तरफ सरकती रहे... सरकती रहे....।
इस बात का तू ख्याल रखना।
Thursday, 6 November 2014
Wednesday, 5 November 2014
1271_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
विदाई की वेला में
ऐसा व्यक्ति नहीं, जो मरेगा नहीं। ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसका वियोग न होगा। ऐसा कोई देश-देशांतर, लोक-लोकांतर नहीं है जो प्रलय से बच पायेगा। अतः अनित्य की आसक्ति छोड़कर नित्यमुक्त आत्मस्वरूप में स्थिर होने के लिए जो सावधान रहता है उसी का जीवन सफल होता है, उसी का जन्म धन्य है !
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Monday, 27 October 2014
1270_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
सभी शास्त्रों का सार...
शरीर न सत् है, न सुन्दर है और न प्रेमरूप है। यह तो हड्डी-मांस, रूधिर और वात-पित्त-कफ से बना हुआ एक जड़ ढाँचा है। यह शरीर पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा और अभी भी नहीं (मृत्यु) की तरफ जा रहा है। परंतु आप तो पहले भी थे, अभी भी हो और बाद में भी रहोगे। अपने को सदैव सच्चिदानंदस्वरूप मानो।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
शरीर न सत् है, न सुन्दर है और न प्रेमरूप है। यह तो हड्डी-मांस, रूधिर और वात-पित्त-कफ से बना हुआ एक जड़ ढाँचा है। यह शरीर पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा और अभी भी नहीं (मृत्यु) की तरफ जा रहा है। परंतु आप तो पहले भी थे, अभी भी हो और बाद में भी रहोगे। अपने को सदैव सच्चिदानंदस्वरूप मानो।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Sunday, 26 October 2014
1269_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~ सावधान.....! ~~~~
अनुभवी आदमी प्रकृति की एकाध थप्पड़ से चेत जाता है और नहीं चेतेगा तो दूसरी मिलेगी, तीसरी मिलेगी। संसार में थप्पड़ मार-मरकर प्रकृति तुम्हें परमात्मा में पहुँचाना चाहती है। समझकर पहुँचना है तो तुम्हें हँसते-खेलते हुए पहुँचा देने के लिए वह प्रकृति देवी तैयार है। अगर नहीं मानते हो, संसार में मोह ममता करते हो तो मोह-ममता की चीजें छीनकर, थप्पड़ें मारकर भी तुम्हें जगाने के लिए वह प्रकृति देवी सक्रिय है। वह है तो आखिर परमात्मा की ही आह्लादिनी शक्ति। वह तुम्हारी शत्रु नहीं है, शुभचिन्तक है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Saturday, 25 October 2014
1268_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~ प्राप्ति और प्रतीति ~~~~
प्रतीति होती है माया में और प्राप्ति होती है अपने परब्रह्म परमात्मा-स्वभाव की। प्राप्त होने वाली एक ही चीज है, प्राप्त होने वाला एक ही तत्त्व है और वह है परमात्म-तत्त्व। उसकी ही केवल प्राप्ति होती है।प्रतीति होती है वृत्तियों से।जो बाहर से मिलेगा, वह सब प्रतीति मात्र होगा।जैसे स्वप्न की चीजों को साथ में लेकर आदमी जाग नहीं सकता, ऐसे ही प्रतीति को सच्चा मानकर परमात्म-तत्त्व में जाग नहीं सकता।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Wednesday, 22 October 2014
Monday, 20 October 2014
1267_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
कबीर जी ने कहाः
कबीरा निन्दक ना मिलो पापी मिलो हजार।
एक निन्दक के माथे पर लाख पापीन को भार।।
विवेकानन्द कहते थेः 'तुम किसी का मकान छीन लो यह पाप तो है लेकिन इतना नहीं। वह घोर पाप नहीं है। किसी के रूपये छीन लेना पाप है लेकिन किसी की श्रद्धा की डोर तोड़ देना यह सबसे बड़ा घोर पाप है क्योंकि उसी श्रद्धा से वह शांति पाता था, उसी श्रद्धा के सहारे वह भगवान के तरफ जाता था।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Sunday, 19 October 2014
1266_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
साम्य द्रष्टि आना चाहिए,यही सारी सृष्टि मंगलमय मालूम होनी चाहिए । जैसे तुम्हें खुद अपने पर विश्वास है वैसा ही सारी सृष्टि पर तुम्हारा विश्वास होना चाहिए ।यहाँ डरने की बात ही क्या है ? सब कुछ सुद्ध और पवित्र है । यह विश्व मंगलमय है क्योंकि परमेश्वर उसकी देख-भाल करता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Friday, 17 October 2014
Tuesday, 14 October 2014
Monday, 13 October 2014
1263_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~~ बुद्धि महान कैसे होती है ? ~~~~~~
बुद्धि को भगवत्प्राप्ति के योग्य बनाओ। जो जरूरी है वह करो, अनावश्यक कार्य और भोग सामग्री में उलझो नहीं। जब बुद्धि बाहर सुख दिखाती है तो क्षीण हो जाती है और जब अंतर्मुख होती है तो महान हो जाती है।
द्धि नष्ट कैसे होती है ?
अपने-आप में अतृप्त रहना, असंतुष्ट रहना, किसी के प्रति राग-द्वेष करना, भयभीत रहना, क्रोध करना आदि से बुद्धि कमजोर हो जाती है।
जो काम है, वासना है कि ʹयह मिल जाय तो सुखी हो जाऊँ, यह पाऊँ, यह भोगूँ....ʹ इससे बुद्धि छोटी हो जाती है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Sunday, 12 October 2014
1262_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~ वीर ! तुम बढ़े चलो.... ~~~~~
हे विद्यार्थी ! पुरुषार्थी बनो, संयमी बनो, उत्साही बनो। लौकिक विद्या तो पाओ ही पर उस विद्या को भी पा लो, जो मानव को जीते-जी मृत्यु के पार पहुँचा देती है।उसे भी जानो जिसको जानने से सब जाना जाता है, इसी में तो मानव-जीवन की सार्थकता है। हे वीर ! तुम बढ़े चलो....
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Saturday, 11 October 2014
1261_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~~~~~ उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ ~~~~~~~~~~~~
उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।
ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)
जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।
ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)
जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Thursday, 9 October 2014
1260_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं-
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।
''हे अर्जुन ! जिस काल में पुरूष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।"
जो अपने आप में तृप्त है, अपने आप में आनन्दित है, अपने आपमें खुश है वह स्थितप्रज्ञ है। तस्य तुलना केन जायते ? उसकी तुलना और किससे करें ? वह ऐसा महान हो जाता है। ऐसे महापुरूष का तो देवता लोग भी दर्शन करके अपना भाग्य बना लेते हैं। तैंतीस करोड़ देवता भी ऐसे महापुरूष का आदर करते हैं तो औरों की क्या बात है ?
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Wednesday, 8 October 2014
1259_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~~ शक्ति सुरक्षा का एक अदभुत उपाय ~~~~~
तालुस्थान (दाँतों से करीब आधा सें.मी. पीछे) में जिह्वा लगाने से जीवनशक्ति केन्द्रित हो जाती है और मस्तिष्क के दायें व बायें भागों में संतुलन रहता है। जब ऐसा संतुलन होता है तब व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, सर्जनात्मक प्रवृत्ति खिलती है और प्रतिकूलताओं का सामना सरलता से हो सकता है।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Tuesday, 7 October 2014
1258_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~ जीवन को महान बनाना है तो.... ~~~~
शास्त्रकारों ने लिखा हैः
आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।
आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।
ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः
अतिसृष्टो अपां वृषभोઽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः। इदं तमति सृजामि तं माઽभ्यवनिक्षि।
ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है, उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में उल्लेख आता हैः
रुजन् परिरूजन् मृणन् प्रमृणन्।। म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।
ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)
शास्त्रकारों ने लिखा हैः
आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।
आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।
ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः
अतिसृष्टो अपां वृषभोઽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः। इदं तमति सृजामि तं माઽभ्यवनिक्षि।
ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है, उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में उल्लेख आता हैः
रुजन् परिरूजन् मृणन् प्रमृणन्।। म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।
ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)
Monday, 6 October 2014
Saturday, 4 October 2014
1256_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
~~~~~ एकाग्रता से आत्मशाँति ~~~~
पुरुष यह चिन्तन करने लगे की सुख-दुःख सब आने-जानेवाला है, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ ये सब प्रकृति के हैं, उसको देखनेवाला मैं असंगो अयं पुरुषः केवल निर्गुणश्च तो क्यों वह सफल नहीं होगा?
इस प्रकार एकाग्रता को तत्त्वज्ञान में ले जाओ तो बेड़ा पार हो जाये।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Thursday, 2 October 2014
Tuesday, 30 September 2014
Monday, 22 September 2014
Sunday, 21 September 2014
Saturday, 20 September 2014
Tuesday, 16 September 2014
Monday, 15 September 2014
Saturday, 13 September 2014
Wednesday, 10 September 2014
Tuesday, 9 September 2014
Sunday, 7 September 2014
Saturday, 6 September 2014
1241_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Thursday, 4 September 2014
1240_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
Wednesday, 3 September 2014
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