Wednesday, 28 March 2012
Tuesday, 27 March 2012
Monday, 26 March 2012
344_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
खूब शान्ति में डूबते जाओ। अपने शान्त स्वभाव में ब्रह्मभाव में परमात्म-स्वभाव में, परितृप्ति स्वभाव में शान्त होते जाओ। अनुभव करते जाओ किः सर्वोऽहम.... शिवोऽहम्... आत्मस्वरूपोऽहम्... चैतन्यऽहम्...। मैं चैतन्य हूँ। मैं सर्वत्र हूँ। मैं सबमें हूँ। मैं परिपूर्ण हूँ। मैं शांत हूँ। ॐ......ॐ......ॐ.......
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Sunday, 25 March 2012
343_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
एकान्तवासो लघुभोजनादि । मौनं निराशा करणावरोधः।।
मुनेरसोः संयमनं षडेते । चित्तप्रसादं जनयन्ति शीघ्रम् ।।
'एकान्त में रहना, अल्पाहार, मौन, कोई आशा न रखना, इन्द्रिय-संयम और प्राणायाम, ये छः मुनि को शीघ्र ही चित्तप्रसाद की प्राप्ति कराते हैं।'
एकान्तवास, इन्द्रियों को अल्प आहार, मौन, साधना में तत्परता, आत्मविचार में प्रवृत्ति... इससे कुछ ही दिनों में आत्मप्रसाद की प्राप्ति हो जाती है।
Pujya Asharam Ji Bapu
342_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है। अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं। तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार-काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ। दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो। सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो। विचारवन्त एवं प्रसन्न रहो।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Saturday, 24 March 2012
Friday, 23 March 2012
336_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जब तक देहाभिमान की नालियों में पड़े रहोगे तब तक चिन्ताओं के बन्डल तुम्हारे सिर पर लदे रहेंगे। तुम्हारा अवतार चिन्ताओं के जाल में फँस मरने के लिए नहीं हुआ है। तुम्हारा जन्म संसार की मजदूरी करने के लिए नहीं हुआ है, हरि का प्यारा होने के लिए हुआ है। हरि को भजे सो हरि का होय। ख्वामखाह चाचा मिटकर भतीजा हो रहे हो ? दुर्बल विचारों और कल्पनाओं की जाल में बँध रहे हो ? कब तक ऐसी नादानी करते रहोगे तुम ? ॐ..ॐ...ॐ...
Pujya Asharam Ji Bapu
Thursday, 22 March 2012
331_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
कोई काम का दीवाना, कोई दाम का दीवाना, कोई चाम का दीवाना, कोई नाम का दीवाना, लेकिन कोई कोई होता है जो राम का दीवाना होता है।
दाम दीवाना दाम न पायो। हर जन्म में दाम को छोड़कर मरता रहा। चाम दीवाना चाम न पायो, नाम दीवाना नाम न पायो लेकिन राम दीवाना राम समायो। मैं वही दीवाना हूँ।
ऐसा महसूस करो कि मैं राम का दीवाना हूँ। लोभी धन का दीवाना है, मोही परिवार का दीवाना है, अहंकारी पद का दीवाना है, विषयी विषय का दीवाना है। साधक तो राम दीवाना ही हुआ करता है। Pujya Asharam Ji Bapu
Wednesday, 21 March 2012
329_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
भगवान के प्यारे भक्त दृढ़ निश्चयी हुआ करते हैं। वे बार-बार प्रभु से प्रार्थना किया करते हैं और अपने निश्चय को दुहराकर संसार की वासनाओं को, कल्पनाओं को शिथिल किया करते हैं। परमात्मा के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए वे कहते हैं-
'हम जन्म-मृत्यु के धक्के-मुक्के अब न खायेंगे। अब आत्माराम में आराम पायेंगे। मेरा कोई पुत्र नहीं, मेरी कोई पत्नी नहीं, मेरा कोई पति नही, मेरा कोई भाई नहीं। मेरा मन नहीं, मेरी बुद्धि नहीं, चित्त नहीं, अहंकार नहीं। मैं पंचभौतिक शरीर नहीं।
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।Pujya Asharam Ji Bapu
328_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
गगन मण्डल में घर किया काल रहा सिर कूट।।
इच्छा मात्र, चाहे वह राजसिक हो या सात्त्विक हो, हमको अपने स्वरूप से दूर ले जाती है। ज्ञानवान इच्छारहित पद में स्थित होते हैं। चिन्ताओं और कामनाओं के शान्त होने पर ही स्वतंत्र वायुमण्डल का जन्म होता है।
हम वासी उस देश के जहाँ पार ब्रह्म का खेल।
दीया जले अगम का बिन बाती बिन तेल।।Pujya Asharam Ji Bapu
327_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
अकर्त्तृत्वममोकृत्वं स्वात्मनो मन्यते यदा।
तदा क्षीणा भवन्त्येव समस्ताश्चित्तवृत्तयः।।
जब पुरूष अपने अकर्त्तापन और अभोक्तापन को जान लेता है तब उस पुरूष की संपूर्ण चित्तवृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं।
(अष्टावक्र गीताः 18.59)
अर्थात् अपनी आत्मा को जब अकर्त्ता-अभोक्ता जानता है तब उसके चित्त के सारे संकल्प और वासनाएँ क्षीण होने लगती हैं।
हकीकत में करना-धरना इन हाथ पैरों का होता है। उसमें मन जुड़ता है। अपनी आत्मा अकर्त्ता है। जैसे बीमार तो शरीर होता है परन्तु चिन्तित मन होता है। बीमारी और चिन्ता का दृष्टा जो मैं है वह निश्चिन्त, निर्विकार और निराकार है। इस प्रकार का अनुसंधान करके जो अपने असली मैं में आते हैं, फिर चाहे मदालसा हो, गार्गी हो, विदुषी सुलभा हो अथवा राजा जनक हो, वे जीते जी यहीं सद्योमुक्ति का अनुभव कर लेते हैं।
सद्योमुक्ति का अनुभव करने वाले महापुरूष विष्णु, महेश, इन्द्र, वरूण, कुबेर आदि के सुख का एक साथ अनुभव कर लेते हैं क्योंकि उनका चित्त एकदम व्यापक आकाशवत् हो जाता है और वे एक शरीर में रहते हुए भी अनन्त ब्रह्माण्डों में व्याप्त होते हैं। जैसे घड़े का आकाश एक घड़े में होते हुए भी ब्रह्माण्ड में फैला है वैसे ही उनका चित्त चैतन्य स्वरूप के अनुभव में व्यापक हो जाता है।
Pujya Asharam Ji Bapu Tuesday, 20 March 2012
326_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जो अपने को आत्मा मानता है, अपने को बादशाहों की जगह पर नियुक्त करता है वह अपने बादशाही स्वभाव को पा लेता है। जो राग-द्वेष के चिन्तन में फँसता है वह ऐसे ही कल्पनाओं के नीचे पीसा जाता है।
मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा हूँ। आत्मा ही तो बादशाह है.... बादशाहों का बादशाह है। सब बादशाहों को नचानेवाला जो बादशाहों का बादशाह है वह आत्मा हूँ मैं।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।।Pujya asharam ji bapu
Monday, 19 March 2012
322_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
दुःख में दुःखी और सुख में सुखी होने वाला मन लोहे जैसा है। सुख-दुःख में समान रहने वाला मन हीरे जैसा है। दुःख सुख का जो खिलवाड़ मात्र समझता है वह है शहंशाह। जैसे लोहा, सोना, हीरा सब होते हैं राजा के ही नियंत्रण में, वैसे ही शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, सुख-दुःखादि होते हैं ब्रह्मवेत्ता के नियंत्रण में।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Sunday, 18 March 2012
320_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
श्रीकृष्ण यह नहीं कहते कि आप मंदिर में, तीर्थस्थान में या उत्तम कुल में प्रगट होगे तभी मुक्त होगे। श्रीकृष्ण तो कहते हैं कि अगर आप पापी से भी पापी हो, दुराचारी से भी दुराचारी हो फिर भी मुक्ति के अधिकारी हो।
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि।।
'यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञानरूप नौका द्वारा निःसन्देह संपूर्ण पाप-समुद्र से भलीभाँति तर जायेगा।'
(भगवद् गीताः ४.३६)
हे साधक ! इस जन्माष्टमी के प्रसंग पर तेजस्वी पूर्णावतार श्रीकृष्ण की जीवन-लीलाओं से, उपदेशों से और श्रीकृष्ण की समता और साहसी आचरणों से सबक सीख, सम रह, प्रसन्न रह, शांत हो, साहसी हो, सदाचारी हो। स्वयं धर्म में स्थिर रह, औरों को धर्म के मार्ग में लगाता रह। मुस्कराते हुए आध्यात्मिक उन्नति करता रह। औरों को सहाय करता रह। कदम आगे रख। हिम्मत रख। विजय तेरी है। सफल जीवन जीने का ढंग यही है।
जय श्रीकृष्ण ! कृष्ण कन्हैयालाल की जय....!
Pujya Asharam Ji Bapu
319_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
तीरथ नहाये एक फल संत मिले फल चार।
सदगुरू मिले अनन्त फल कहे कबीर विचार।।
तीर्थ में स्नान करो तो पुण्य बढ़ेगा। संत का सान्निध्य मिले तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों के द्वार खुल जाएँगे। वे ही संत जब सदगुरू के रूप में मिल जाते हैं तो उनकी वाणी हमारे हृदय में ऐसा गहरा प्रभाव डालती है कि हम अपने वास्तविक 'मैं' में पहुँच जाते हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu Saturday, 17 March 2012
314_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
यदि आप सर्वांगपूर्ण जीवन का आनन्द लेना चाहते हो तो कल की चिन्ता छोड़ो | अपने चारों ओर जीवन के बीज बोओ | भविष्य में सुनहरे स्वपन साकार होते देखने की आदत बनाओ | सदा के लिये मन में यह बात पक्की बैठा दो कि आपका आनेवाला कल अत्यन्त प्रकाशमय, आनन्दमय एवं मधुर होगा | कल आप अपने को आज से भी अधिक भाग्यवान् पायेंगे | आपका मन सर्जनात्मक शक्ति से भर जायेगा | जीवन ऐश्वर्यपूर्ण हो जायेगा | आपमें इतनी शक्ति है कि विघ्न आपसे भयभीत होकर भाग खड़े होंगे | ऐसी विचारधारा से निश्चित रूप से कल्याण होगा | आपके संशय मिट जायेंगे |
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Friday, 16 March 2012
313_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
उमा तिनके बड़े अभाग, जे नर हरि तजि विषय भजहिं।
परमात्मा को छोड़कर जो विषयों का चिन्तन करते हैं उनके बड़े दुर्भाग्य हैं। विष में और विषय में अन्तर है। विष का चिन्तन करने से मौत नहीं होती, विष का चिन्तन करने से पतन नहीं होता, विष जिस बोतल में रहता है उस बोतल का नाश नहीं करता लेकिन विषय जिस चित्त में रहता है उसको बरबाद करता है, विषय का चिन्तन करने मात्र से पतन होता है, साधना की मौत होती है। विषय इस जीव के लिए इतने दुःखद हैं कि समुद्र में डूबना पड़े तो डूब जाना, आग में कूदना पड़े तो कूद पड़ना, विषधर को आलिंगन करना पड़े तो कर लेना लेकिन लीलाशाह बापू जैसे महापुरुष कहते हैं किः "भाइयों ! अपने को विषयों में मत गिरने देना। आग में कूदोगे तो एक बार ही मृत्यु होगी, समुद्र में डूबोगे तो एक बार ही मृत्यु होगी लेकिन विषयों में डूबे तो न जाने कितनी बार मृत्यु होगी इसका कोई हिसाब नहीं।"
Pujya asharam ji bapu 311_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
रोटी की जितनी जरूरत है, कपड़ों की जितनी जरूरत है, मकान की जितनी जरूरत है उससे हजार गुनी ज्यादा जरूरत है सच्ची समझ की। सच्ची समझ के बिना हमारा जीवन सुख का और दुःखों का शिकार हुआ जा रहा है। लोग बोलते हैं-
'बापू ! बेटा नहीं है इसलिए दुःख हो रहा है। रोना आता है....!'
किसी का बेटा नहीं है तो दुःख हो रहा है, किसी को पति नहीं है, पत्नी नहीं है, मकान नहीं है तो दुःख हो रहा है लेकिन जिनके आगे हजारों बेटों की, हजारों पतियों की, हजारों पत्नियों की, हजारों मकानों की, हजारों दुकानों की कोई कीमत नहीं है ऐसे परमात्मा हमारे साथ हैं, भीतर हैं फिर भी आज तक उनकी पहचान नहीं हुई इस बात का दुःख नहीं होता। आनंदस्वरूप अन्तर्यामी परमात्मा का अनुभव नहीं होता इसके लिए रोना नहीं आता।
Pujya Asharam Ji Bapu 310_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी सत्संग साध की, हरे कोटि अपराध।।
जो चार कदम चलकर ब्रह्मज्ञान के सत्संग में जाता है, तो यमराज की भी ताकत नहीं उसे हाथ लगाने की। ब्रह्मज्ञान का सत्संग-श्रवण इतना महान है !
ऐसा सत्संग सुनने से पाप-ताप कम हो जाते हैं। पाप करने की रूचि भी कम हो जाती है। सत्संग से बल बढ़ता है। सारी दुर्बलताएँ दूर होने लगती हैं।
Pujya asharam ji bapu 308_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
प्राणिमात्र में परमात्मा को निहारने का अभ्यास करके शुद्ध अन्तःकरण का निर्माण करना यह शील है। यह महा धन है। स्वर्ग की संपत्ति मिल जाय, स्वर्ग में रहने को मिल जाय लेकिन वहाँ ईर्ष्या है, पुण्यक्षीणता है, भय है। जिसके जीवन में शील होता है उसको ईर्ष्या, पुण्यक्षीणता या भय नहीं होता। शील आभूषणों का भी आभूषण है।
शील में क्या आता है ? सत्य, तप, व्रत, सहिष्णुता, उदारता आदि सदगुण।
आप जैसा अपने लिए चाहते हैं, वैसा दूसरों के साथ व्यवहार करें। अपना अपमान नहीं चाहते तो दूसरों का अपमान करने का सोचें तक नहीं। आपको कोई ठग ले, ऐसा नहीं चाहते तो दूसरों को ठगने का विचार नहीं करें। आप किसी से दुःखी होना नहीं चाहते तो अपने मन, वचन, कर्म से दूसरा दुःखी न हो इसका ख्याल रखें।
Pujya Asharam Ji Bapu Thursday, 15 March 2012
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