Wednesday, 28 March 2012

352_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

दुनियाँ के सब लोग मिलकर तुम्हारे शरीर
की सेवा में लग जाएँ फिर भी तुम्हारे स्व
में कुछ बढ़ौती नहीं होगी । तुम्हारा विरोध
में सारा विश्व उल्टा होकर टँग जाय फिर
भी तुम्हारे स्व में कोई कटौती नहीं होगी

Pujya Asharam Ji Bapu

351_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

दृश्य में दृष्टा का भान एवं दृष्टा में दृश्य का भान हो रहा है ।
इस गड़बड़ का नाम ही अविवेक या अज्ञान है । दृष्टा को
दृष्टा तथा दृश्य को दृश्य समझना ही विवेक या ज्ञान है ।

 Pujya Asharam Ji Bapu

350_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

इस सम्पूर्ण जगत को पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर जानकर तुम आत्मा में स्थिर हो जाओ | तुम अद्वैत दृष्टिवाले को शोक और मोह कैसे ?
 Pujya Asharam Ji Bapu

Tuesday, 27 March 2012

349_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

 प्रेमी आगे-पीछे का चिन्तन नहीं करता | वह तो किसी आशंका से भयभीत होता है और वर्त्तमान परिस्थिति में प्रेमास्पद में प्रीति के सिवाय अन्य कहीं आराम पाता है
 Pujya Asharam Ji Bapu

348_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

पवित्रता और सच्चाई, विश्वास और भलाई से भरा हुआ मनुष्य उन्नति का झण्डा हाथ में लेकर जब आगे बढ़ता है तब किसकी मजाल कि बीच में खड़ा रहे ?
Pujya Asharam Ji Bapu

347_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जैसे सामान्य मनुष्य को पत्थर, गाय, भैंस स्वाभाविक रीति से दृष्टिगोचर होते हैं, वैसे ही ज्ञानी को निजानन्द का स्वाभाविक अनुभव होता है
 Pujya Asharam Ji Bapu

Monday, 26 March 2012

346_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जो एक से राग करता है, वह दूसरे से द्वेष करेगा। जो किसी से राग नहीं करता है, वह किसी से द्वेष भी नहीं करेगा। वह परम प्रेमी होता है। वह जीवन्मुक्त होता है। न प्रलय है, न उत्पत्ति है, न बद्ध है, न साधक है, न मुमुक्षु है और न मुक्त ही है। यही परमार्थ है।
 Pujya Asharam Ji Bapu

345_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

बनता बिगड़ता तुम्हारा शरीर है, बनता बिगड़ता तुम्हारा मन है, बनता बिगड़ता तुम्हारा भाव है लेकिन तुम्हारा स्वरूप, तुम्हारा आत्मा कभी बनता बिगड़ता नहीं।
 Pujya Asharam Ji Bapu

344_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

खूब शान्ति में डूबते जाओ। अपने शान्त स्वभाव में ब्रह्मभाव में परमात्म-स्वभाव में, परितृप्ति स्वभाव में शान्त होते जाओ। अनुभव करते जाओ किः सर्वोऽहम.... शिवोऽहम्... आत्मस्वरूपोऽहम्... चैतन्यऽहम्...। मैं चैतन्य हूँ। मैं सर्वत्र हूँ। मैं सबमें हूँ। मैं परिपूर्ण हूँ। मैं शांत हूँ। ॐ......ॐ......ॐ.......
 Pujya Asharam Ji Bapu

Sunday, 25 March 2012

343_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

एकान्तवासो लघुभोजनादि । मौनं निराशा करणावरोधः।।
मुनेरसोः संयमनं षडेते । चित्तप्रसादं जनयन्ति शीघ्रम् ।।
'एकान्त में रहना, अल्पाहार, मौन, कोई आशा न रखना, इन्द्रिय-संयम और प्राणायाम, ये छः मुनि को शीघ्र ही चित्तप्रसाद की प्राप्ति कराते हैं।'
एकान्तवास, इन्द्रियों को अल्प आहार, मौन, साधना में तत्परता, आत्मविचार में प्रवृत्ति... इससे कुछ ही दिनों में आत्मप्रसाद की प्राप्ति हो जाती है। 
Pujya Asharam Ji Bapu 

342_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है। अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं। तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार-काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ। दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो। सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो। विचारवन्त एवं प्रसन्न रहो। 
 Pujya Asharam Ji Bapu

Saturday, 24 March 2012

341_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जब पने व्यक्तित्व विषयक विचारों का सर्वथा त्याग कर दिया जाता है तब उसके समान अन्य कोई सुख नहीं, उसके समान श्रेष्ठ अन्य कोई अवस्था नहीं |
 Pujya Asharam Ji Bapu

339_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

आदमी पहले भीतर से गिरता है फिर बाहर से गिरता है। भीतर से उठता है तब बाहर से उठता है। बाहर कुछ भी हो जाय लेकिन भीतर से नहीं गिरो तो बाहर की परिस्थितियाँ तुम्हारे अनुकूल हो जायेंगी।
Pujya Asharam Ji Bapu 

Friday, 23 March 2012

338_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सात्त्विक सुख पहले जरा दुःख जैसा लगता है। बाद में उसका फल बड़ा मधुर होता है। राजसी सुख पहले सुखद लगता है लेकिन बाद में मुसीबत में डाल देता है। तामसी सुख में पहले भी परेशानी और बाद में भी परेशानी...घोर नर्क।
 Pujya Asharam Ji Bapu

337_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

साधक को अपने दोष दिखने लग जाय तो समझो  उसके दोष दूर हो रहे हैं। दोष अपने आप में होते तो नहीं दिखते। अपने से पृथक हैं इसलिए दिख रहे हैं। जो भी दोष तुम्हारे जीवन में हो गये हों उनको आप अपने से दूर देखो। ॐ की गदा से उनको कुचल डालो। आत्मशान्ति के प्रवाह में उन्हें डुबा दो।
 Pujya Asharam Ji Bapu

336_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जब तक देहाभिमान की नालियों में पड़े रहोगे तब तक चिन्ताओं के बन्डल तुम्हारे सिर पर लदे रहेंगे। तुम्हारा अवतार चिन्ताओं के जाल में फँस मरने के लिए नहीं हुआ है। तुम्हारा जन्म संसार की मजदूरी करने के लिए नहीं हुआ है, हरि का प्यारा होने के लिए हुआ है। हरि को भजे सो हरि का होय। ख्वामखाह चाचा मिटकर भतीजा हो रहे हो ? दुर्बल विचारों और कल्पनाओं की जाल में बँध रहे हो ? कब तक ऐसी नादानी करते रहोगे तुम ? ॐ..ॐ...ॐ...
Pujya Asharam Ji Bapu 

Thursday, 22 March 2012

335_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

डरपोक होकर जिये तो क्या जिये ? मूर्ख होकर जिये तो क्या जिये ? भोगी होकर जिये तो क्या खाक जिये ? योगी होकर जियो। ब्रह्मवेत्ता होकर जियो। ईश्वर के साथ खेलते हुए जियो।

Pujya Asharam Ji Bapu 

334_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

इस माया की दो शक्तियाँ हैः आवरण शक्ति और विक्षेप शक्ति। आवरण बुद्धि पर पड़ता है और विक्षेप मन पर पड़ता है। सत्कार्य करके, जप तप करके, निष्काम कर्म करके विक्षेप हटाया जाता है। विचार करके आवरण हटाया जाता है।
Pujya Asharam Ji Bapu

333_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

बल ही जीवन है। दुर्बलता ही मौत है। दुर्बल विचारों को दूर हटाते जाओ। आत्मबल.... आज का प्रभात आत्मप्रकाश का प्रभात हो रहा है। ॐ....ॐ.....ॐ.....
Pujya Asharam Ji Bapu 

332_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

तुम्हारी जितनी घड़ियाँ परमात्मा के ध्यान में बीत जायें वे सार्थक हैं। जितनी देर मौन हो जायें वह कल्याणप्रद है। श्वास की गति जितनी देर धीमी हो जाय वह हितावह है, मंगलकारी है।
Pujya Asharam Ji Bapu

331_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

कोई काम का दीवाना, कोई दाम का दीवाना, कोई चाम का दीवाना, कोई नाम का दीवाना, लेकिन कोई कोई होता है जो राम का दीवाना होता है।

दाम दीवाना दाम न पायो। हर जन्म में दाम को छोड़कर मरता रहा। चाम दीवाना चाम न पायो, नाम दीवाना नाम न पायो लेकिन राम दीवाना राम समायो। मैं वही दीवाना हूँ।
ऐसा महसूस करो कि मैं राम का दीवाना हूँ। लोभी धन का दीवाना है, मोही परिवार का दीवाना है, अहंकारी पद का दीवाना है, विषयी विषय का दीवाना है। साधक तो राम दीवाना ही हुआ करता है। 
Pujya Asharam Ji Bapu

Wednesday, 21 March 2012

330_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

त्रिबन्ध के साथ प्राणायाम करने से चित्त के दोष दूर होने लगते हैं, पाप पलायन होने लगते हैं, हृदय में शान्ति और आनन्द आने लगता है, बुद्धि में निर्मलता आने लगती है। विघ्न, बाधाएँ, मुसीबतें किनारा करने लगती हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu

329_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

भगवान के प्यारे भक्त दृढ़ निश्चयी हुआ करते हैं। वे बार-बार प्रभु से प्रार्थना किया करते हैं और अपने निश्चय को दुहराकर संसार की वासनाओं को, कल्पनाओं को शिथिल किया करते हैं। परमात्मा के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए वे कहते हैं-
'हम जन्म-मृत्यु के धक्के-मुक्के अब न खायेंगे। अब आत्माराम में आराम पायेंगे। मेरा कोई पुत्र नहीं, मेरी कोई पत्नी नहीं, मेरा कोई पति नही, मेरा कोई भाई नहीं। मेरा मन नहीं, मेरी बुद्धि नहीं, चित्त नहीं, अहंकार नहीं। मैं पंचभौतिक शरीर नहीं।
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।

Pujya Asharam Ji Bapu

328_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

मन की मनसा मिट गई भरम गया सब दूर।

गगन मण्डल में घर किया काल रहा सिर कूट।।

इच्छा मात्र, चाहे वह राजसिक हो या सात्त्विक हो, हमको अपने स्वरूप से दूर ले जाती है। ज्ञानवान इच्छारहित पद में स्थित होते हैं। चिन्ताओं और कामनाओं के शान्त होने पर ही स्वतंत्र वायुमण्डल का जन्म होता है।

हम वासी उस देश के जहाँ पार ब्रह्म का खेल।
दीया जले अगम का बिन बाती बिन तेल।।

Pujya Asharam Ji Bapu

327_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

अकर्त्तृत्वममोकृत्वं स्वात्मनो मन्यते यदा।
तदा क्षीणा भवन्त्येव समस्ताश्चित्तवृत्तयः।।
जब पुरूष अपने अकर्त्तापन और अभोक्तापन को जान लेता है तब उस पुरूष की संपूर्ण चित्तवृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं।
(अष्टावक्र गीताः 18.59)
अर्थात् अपनी आत्मा को जब अकर्त्ता-अभोक्ता जानता है तब उसके चित्त के सारे संकल्प और वासनाएँ क्षीण होने लगती हैं।
हकीकत में करना-धरना इन हाथ पैरों का होता है। उसमें मन जुड़ता है। अपनी आत्मा अकर्त्ता है। जैसे बीमार तो शरीर होता है परन्तु चिन्तित मन होता है। बीमारी और चिन्ता का दृष्टा जो मैं है वह निश्चिन्त, निर्विकार और निराकार है। इस प्रकार का अनुसंधान करके जो अपने असली मैं में आते हैं, फिर चाहे मदालसा हो, गार्गी हो, विदुषी सुलभा हो अथवा राजा जनक हो, वे जीते जी यहीं सद्योमुक्ति का अनुभव कर लेते हैं।
सद्योमुक्ति का अनुभव करने वाले महापुरूष विष्णु, महेश, इन्द्र, वरूण, कुबेर आदि के सुख का एक साथ अनुभव कर लेते हैं क्योंकि उनका चित्त एकदम व्यापक आकाशवत् हो जाता है और वे एक शरीर में रहते हुए भी अनन्त ब्रह्माण्डों में व्याप्त होते हैं। जैसे घड़े का आकाश एक घड़े में होते हुए भी ब्रह्माण्ड में फैला है वैसे ही उनका चित्त चैतन्य स्वरूप के अनुभव में व्यापक हो जाता है।
Pujya Asharam Ji Bapu 

Tuesday, 20 March 2012

326_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जो अपने को आत्मा मानता है, अपने को बादशाहों की जगह पर नियुक्त करता है वह अपने बादशाही स्वभाव को पा लेता है। जो राग-द्वेष के चिन्तन में फँसता है वह ऐसे ही कल्पनाओं के नीचे पीसा जाता है।
मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा हूँ। आत्मा ही तो बादशाह है.... बादशाहों का बादशाह है। सब बादशाहों को नचानेवाला जो बादशाहों का बादशाह है वह आत्मा हूँ मैं।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
                          चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।।
Pujya asharam ji bapu

325_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

निर्द्वन्द्व रह निःशंक रह, निर्भय सदा निष्काम रे।
चिंता कभी मत कीजिये, जो होय होने दीजिये।।

Monday, 19 March 2012

324_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सदगुरुदेव के चरणकमलों की पूजा के लिए नम्रता के पुष्प से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई पुष्प नहीं है
(ऋषि प्रसाद)

323_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

गुरुभक्ति और गुरुसेवा ये साधनारूपी नौका की पतवार है जो शिष्य को संसारसागर से पार होने में सहायरूप हैं।
(ऋषि प्रसाद)

322_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

दुःख में दुःखी और सुख में सुखी होने वाला मन लोहे जैसा है। सुख-दुःख में समान रहने वाला मन हीरे जैसा है। दुःख सुख का जो खिलवाड़ मात्र समझता है वह है शहंशाह। जैसे लोहा, सोना, हीरा सब होते हैं राजा के ही नियंत्रण में, वैसे ही शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, सुख-दुःखादि होते हैं ब्रह्मवेत्ता के नियंत्रण में। 

Pujya Asharam Ji Bapu

Sunday, 18 March 2012

321_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

धीरो न द्वेष्टि ससारं आत्मानं न दिदृक्षति।
हर्षाभर्षविनिर्मुक्तो न मृतो न च जीवति।।
"हर्ष और द्वेष से रहित ज्ञानी संसार के प्रति न द्वेष करता है और न आत्मा को देखने की इच्छा करता है। वह न मरा हुआ है और न जीता है।"
(अष्टावक्र गीताः 83)

320_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

श्रीकृष्ण यह नहीं कहते कि आप मंदिर में, तीर्थस्थान में या उत्तम कुल में प्रगट होगे तभी मुक्त होगे। श्रीकृष्ण तो कहते हैं कि अगर आप पापी से भी पापी हो, दुराचारी से भी दुराचारी हो फिर भी मुक्ति के अधिकारी हो।
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि।।
'यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञानरूप नौका द्वारा निःसन्देह संपूर्ण पाप-समुद्र से भलीभाँति तर जायेगा।'
(भगवद् गीताः .३६)
हे साधक ! इस जन्माष्टमी के प्रसंग पर तेजस्वी पूर्णावतार श्रीकृष्ण की जीवन-लीलाओं से, उपदेशों से और श्रीकृष्ण की समता और साहसी आचरणों से सबक सीख, सम रह, प्रसन्न रह, शांत हो, साहसी हो, सदाचारी हो। स्वयं धर्म में स्थिर रह, औरों को धर्म के मार्ग में लगाता रह। मुस्कराते हुए आध्यात्मिक उन्नति करता रह। औरों को सहाय करता रह। कदम आगे रख। हिम्मत रख। विजय तेरी है। सफल जीवन जीने का ढंग यही है।
जय श्रीकृष्ण ! कृष्ण कन्हैयालाल की जय....!

Pujya Asharam Ji Bapu

319_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

तीरथ नहाये एक फल संत मिले फल चार।
सदगुरू मिले अनन्त फल कहे कबीर विचार।।
तीर्थ में स्नान करो तो पुण्य बढ़ेगा। संत का सान्निध्य मिले तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों के द्वार खुल जाएँगे। वे ही संत जब सदगुरू के रूप में मिल जाते हैं तो उनकी वाणी हमारे हृदय में ऐसा गहरा प्रभाव डालती है कि हम अपने वास्तविक 'मैं' में पहुँच जाते हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu





Saturday, 17 March 2012

318_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

 राग-द्वेष की निवृति का क्या उपाय है ? उपाय यही है कि सारे जगत-प्रपंच को मनोराज्य समझो | निन्दा-स्तुति से, राग-द्वष से प्रपंच में सत्यता दृढ़ होती है |
Pujya Asharam Ji Bapu

317_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

साधना की शुरुआत श्रद्धा से होती है लेकिन समाप्ति ज्ञान से होनी चाहिये | ज्ञान माने स्वयंसहित सर्व ब्रह्मस्वरूप है ऐसा अपरोक्ष अनुभव |
Pujya Asharam Ji Bapu

316_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

आसन स्थिर करने के लिए संकल्प करें कि जैसे पृथ्वी को धारण करते हुए भी शेषजी बिल्कुल अचल रहते हैं वैसे मैं भी अचल रहूँगा | मैं शरीर और प्राण का दृष्टा हूँ
Pujya Asharam Ji Bapu 

315_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

मैं भी नहीं और मुझसे अलग अन्य भी कुछ नहीं | साक्षात् आनन्द से परिपूर्ण, केवल, निरन्तर और सर्वत्र एक ब्रह्म ही है | उद्वेग छोड़कर केवल यही उपासना सतत करते रहो |
Pujya Asharam Ji Bapu

314_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

 यदि आप सर्वांगपूर्ण जीवन का आनन्द लेना चाहते हो तो कल की चिन्ता छोड़ो | अपने चारों ओर जीवन के बीज बोओ | भविष्य में सुनहरे स्वपन साकार होते देखने की आदत बनाओ | सदा के लिये मन में यह बात पक्की बैठा दो कि आपका आनेवाला कल अत्यन्त प्रकाशमय, आनन्दमय एवं मधुर होगा | कल आप अपने को आज से भी अधिक भाग्यवान् पायेंगे | आपका मन सर्जनात्मक शक्ति से भर जायेगा | जीवन ऐश्वर्यपूर्ण हो जायेगा | आपमें इतनी शक्ति है कि विघ्न आपसे भयभीत होकर भाग खड़े होंगे | ऐसी विचारधारा से निश्चित रूप से कल्याण होगा | आपके संशय मिट जायेंगे |
Pujya Asharam Ji Bapu

Friday, 16 March 2012

313_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

उमा तिनके बड़े अभाग, जे नर हरि तजि विषय भजहिं।
परमात्मा को छोड़कर जो विषयों का चिन्तन करते हैं उनके बड़े दुर्भाग्य हैं। विष में और विषय में अन्तर है। विष का चिन्तन करने से मौत नहीं होती, विष का चिन्तन करने से पतन नहीं होता, विष जिस बोतल में रहता है उस बोतल का नाश नहीं करता लेकिन विषय जिस चित्त में रहता है उसको बरबाद करता है, विषय का चिन्तन करने मात्र से पतन होता है, साधना की मौत होती है। विषय इस जीव के लिए इतने दुःखद हैं कि समुद्र में डूबना पड़े तो डूब जाना, आग में कूदना पड़े तो कूद पड़ना, विषधर को आलिंगन करना पड़े तो कर लेना लेकिन लीलाशाह बापू जैसे महापुरुष कहते हैं किः "भाइयों ! अपने को विषयों में मत गिरने देना। आग में कूदोगे तो एक बार ही मृत्यु होगी, समुद्र में डूबोगे तो एक बार ही मृत्यु होगी लेकिन विषयों में डूबे तो न जाने कितनी बार मृत्यु होगी इसका कोई हिसाब नहीं।"
Pujya asharam ji bapu

312_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जौ न तरै भवसागर नर समाज अस पाई।
सो कृत निन्दक मन्दमति आतमहन अधोगति जाई।
मानव तन पाकर जो भवसागर नहीं तरता वह क्या कुत्ता होकर तरेगा? बिल्ला होकर तरेगा? गधा होकर तरेगा कि घोड़ा होकर तरेगा? इन योनियों में तो डण्डे ही खाने हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu

311_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

रोटी की जितनी जरूरत है, कपड़ों की जितनी जरूरत है, मकान की जितनी जरूरत है उससे हजार गुनी ज्यादा जरूरत है सच्ची समझ की। सच्ची समझ के बिना हमारा जीवन सुख का और दुःखों का शिकार हुआ जा रहा है। लोग बोलते हैं-
'बापू ! बेटा नहीं है इसलिए दुःख हो रहा है। रोना आता है....!'
किसी का बेटा नहीं है तो दुःख हो रहा है, किसी को पति नहीं है, पत्नी नहीं है, मकान नहीं है तो दुःख हो रहा है लेकिन जिनके आगे हजारों बेटों की, हजारों पतियों की, हजारों पत्नियों की, हजारों मकानों की, हजारों दुकानों की कोई कीमत नहीं है ऐसे परमात्मा हमारे साथ हैं, भीतर हैं फिर भी आज तक उनकी पहचान नहीं हुई इस बात का दुःख नहीं होता। आनंदस्वरूप अन्तर्यामी परमात्मा का अनुभव नहीं होता इसके लिए रोना नहीं आता।
Pujya Asharam Ji Bapu

310_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी सत्संग साध की, हरे कोटि अपराध।।
जो चार कदम चलकर ब्रह्मज्ञान के सत्संग में जाता है, तो यमराज की भी ताकत नहीं उसे हाथ लगाने की। ब्रह्मज्ञान का सत्संग-श्रवण इतना महान है !
ऐसा सत्संग सुनने से पाप-ताप कम हो जाते हैं। पाप करने की रूचि भी कम हो जाती है। सत्संग से बल बढ़ता है। सारी दुर्बलताएँ दूर होने लगती हैं।
Pujya asharam ji bapu

309_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

तुलसी पूर्व के पाप से हरिचर्चा नहीं सुहाय।
                                         जैसे ज्वर के जोर से भूख विदा हो जाय।।

308_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

प्राणिमात्र में परमात्मा को निहारने का अभ्यास करके शुद्ध अन्तःकरण का निर्माण करना यह शील है। यह महा धन है। स्वर्ग की संपत्ति मिल जाय, स्वर्ग में रहने को मिल जाय लेकिन वहाँ ईर्ष्या है, पुण्यक्षीणता है, भय है। जिसके जीवन में शील होता है उसको ईर्ष्या, पुण्यक्षीणता या भय नहीं होता। शील आभूषणों का भी आभूषण है।

शील में क्या आता है ? सत्य, तप, व्रत, सहिष्णुता, उदारता आदि सदगुण।
आप जैसा अपने लिए चाहते हैं, वैसा दूसरों के साथ व्यवहार करें। अपना अपमान नहीं चाहते तो दूसरों का अपमान करने का सोचें तक नहीं। आपको कोई ठग ले, ऐसा नहीं चाहते तो दूसरों को ठगने का विचार नहीं करें। आप किसी से दुःखी होना नहीं चाहते तो अपने मन, वचन, कर्म से दूसरा दुःखी न हो इसका ख्याल रखें।
Pujya Asharam Ji Bapu

Thursday, 15 March 2012

307_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

नर नहीं वह जन्तु है, जिस नर को धर्म का मान नहीं।
                   व्यर्थ है वह जीवन जिसमें आत्मतत्त्व का ज्ञान नहीं।।

306_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

बड़े धनभागी हैं वे सतशिष्य जो तितिक्षाओं को सहने का बाद भी अपने सदगुरु के ज्ञान औ भारतीय संस्कृति के दिव्य कणों को दूर-दूर तक फैलाकर मानव-मन पर व्याप्त अंधकार को नष्ट करते रहते हैं। ऐसे सतशिष्यों को शास्त्रों में पृथ्वी पर के देव कहा जाता है।
Pujya Asharam Ji Bapu

305_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

हे निष्पाप श्री राम ! तुम दैव का आश्रय त्याग कर अपने पुरुषार्थ का आश्रय करो। जिसने अपना पुरुषार्थ त्यागा है उसको सुन्दरता, कान्ति और लक्ष्मी त्याग जाती है।
Shri Yoga Vashishtha Maharamayan

Tuesday, 13 March 2012

304_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

आत्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है - ऐसी समझ रखना ही आत्मनिष्ठा है
Pujya Asharam Ji Bapu

303_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

वास्तविक शिक्षण का प्रारंभ तो तभी होता है जब मनुष्य सब प्रकार की सहायताओं से विमुख होकर अपने भीतर के अनन्त स्रोत की तरफ अग्रसर होता है |
Pujya Asharam Ji Bapu