Wednesday, 30 November 2011

13_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

अतीत का शोक और
भविष्य की चिंता
क्यों करते हो?
हे प्रिय !
वर्तमान में साक्षी, तटस्थ और
प्रसन्नात्मा होकर जीयो....
Pujya asharam ji bapu  :-

Tuesday, 29 November 2011

12_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

इस सम्पूर्ण जगत को पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर जानकर तुम आत्मा में स्थिर हो जाओ | तुम अद्वैत दृष्टिवाले को शोक और मोह कैसे ?
Pujya asharam ji bapu  :-

Monday, 28 November 2011

11_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

प्रकृति प्रसन्नचित्त एवं उद्योगी कार्यकर्ता को हर प्रकार से सहायता करती है |
Pujya asharam ji bapu :-

10_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सारे धनवान लोग मिलकर एक आदमी को उतना सुख नहीं दे सकते जो सदगुरु निगाह मात्र से सत् शिष्य को दे सकते हैं
Pujya asharam ji bapu  :-

Sunday, 27 November 2011

9_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

दर्द दिल में छुपाकर मुस्कुराना सीख ले।
गम के पर्दे में खुशी के गीत गाना सीख ले।।
तू अगर चाहे तो तेरा गम खुशी हो जाएगा।
                                                मुस्कुराकर गम के काँटों को जलाना सीख ले।।
                                              Pujya asharam ji bapu :-

8_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

जिसने बाँटा उसने पाया। जिसने सँभाला उसने गँवाया।
तालाब और नदी के बीच बात चली। तालाब कहता हैः
"पगली ! कलकल छलछल करती, गाती गुनगुनाती भागी जा रही है सागर के पास। तुझे वह क्या देगा ? तेरा सारा मीठा जल ले लेगा और खारा बना डालेगा। जरा सोच, समझ। अपना जल अपने पास रख। काम आयगा।"
नदी कहती हैः "मैं कल की चिन्ता नहीं करती। जीवन है बहती धारा। बहती धारा को बहने ही दो।"
तालाब ने खूब समझाया लेकिन सरिता ने माना नहीं। तालाब ने तो अपना पानी संग्रह करके रखा। ऐसे ऐसे मच्छों को, मगरों को रख दिये अपने भीतर कि कोई भीतर आ ही न सके, स्नान भी न कर सके, डर के मारे पानी पीने भी न आ सके।
कुछ समय के बाद तालाब का बँधियार पानी गंदा हुआ, उसमें सेवार हो गई, मच्छर बढ़ गये, गाँव में मलेरिया फैल गया। गाँव के लोगों ने और नगर पंचायत ने मिलकर तालाब को भर दिया।
उधर सरिता तो बहती रही। सागर में अपना नाम-रूप मिटाकर मिल गई। अपने को मैं सागर हूँ ऐसा एहसास करने लगी। उसी सागर से जल उठा, वाष्प बना, वर्षा हुई और नदी ताजी की ताजी बहती रही। 'गंगे हर.... यमुने हर.... नर्मदे हर...' जय घोष होता रहा।
Pujya asharam ji bapu  :-

7_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

संसार की लहरियाँ तो बदलती जाएँगी इसलिए हे मित्र ! हे मेरे भैया ! हे वीर पुरुष ! रोत, चीखते, सिसकते जिन्दगी क्या बिताना? मुस्कुराते रहो.... हरि गीत गाते रहो... हरि रस पीते रहो.... यही शुभ कामना
Pujya asharam ji bapu :-

Saturday, 26 November 2011

6_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU


मन की मनसा मिट गई भरम गया सब दूर।
गगन मण्डल में घर किया काल रहा सिर कूट।।
इच्छा मात्र, चाहे वह राजसिक हो या सात्त्विक हो, हमको अपने स्वरूप से दूर ले जाती है। ज्ञानवान इच्छारहित पद में स्थित होते हैं। चिन्ताओं और कामनाओं के शान्त होने पर ही स्वतंत्र वायुमण्डल का जन्म होता है।
Pujya asharam ji bapu  :-

5_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASARAM JI BAPU

शरीर की मौत हो जाना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन श्रद्धा की मौत हुई तो समझो सर्वनाश हुआ।
Pujya asaram ji bapu :-

Friday, 25 November 2011

THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASARAM JI BAPU(4)

संसार को
पालो
और
भगवान को
पा
लो।
Pujya asaram ji bapu:-

THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASARAM JI BAPU(3)

किसीका अहित हो ऐसी बात न सोचना, न कहना और न कभी करना | ऐसी ही बात सोचना, कहना और करना जिससे किसीका हित हो
Pujya asaram ji bapu :-

Wednesday, 23 November 2011

दुनियावाले ने दुनिया ऐसी बनायी है।
हजारों खुशियाँ होते हुए आख्रिर रूलाई है।।
कितनी भी खुशियाँ भोगो लेकिन आखिर क्या? खुशी मन को होती है। जब तक तन और मन से पार नहीं गये तब तक खुशी और गम पीछा नहीं छोड़ेंगे।
अंतःकरण की मलिनता मिटाने के लिए निष्काम कर्म है। निष्काम कर्म से अंतःकरण शुद्ध होता है। उपासना से चित्त का विक्षेप दूर होता है। ज्ञान से अज्ञान दूर होता है। फिर आदमी विकास की पराकाष्ठा पर पहुँचता है।
Pujya asaram ji bapu :-
चालू व्यवहार में से एकदम उपराम होकर दो मिनट के लिए विराम लो | सोचो कि मैं कौन हूँ ? सर्दी-गर्मी शरीर को लगती है | भूख-प्यास प्राणों को लगती है | अनुकूलता-प्रतिकूलता मन को लगती है | शुभ-अशुभ एवं पाप-पुण्य का निर्णय बुद्धि करती है | मैं न शरीर हूँ, न प्राण हूँ, न मन हूँ, न बुद्धि हूँ | मैं तो हूँ इन सबको सत्ता देने वाला, इन सबसे न्यारा निर्लेप आत्मा |’
Pujya asaram ji bapu :-
 

Tuesday, 22 November 2011

कोई कोई जोगी बच गये, पारब्रह्म की ओट।
                                          चक्की चलती काल की, पड़ी सभी पर चोट।।


जो दूसरों का सहारा खोजता है, वह सत्यस्वरूप ईश्वर की सेवा नहीं कर सकता |
Pujya asaram ji bapu :-

Monday, 21 November 2011

   पवित्रता और सच्चाई, विश्वास और भलाई से भरा हुआ मनुष्य उन्नति का झण्डा हाथ में लेकर जब आगे बढ़ता है तब किसकी मजाल कि बीच में खड़ा रहे ? यदि आपके दिल में पवित्रता, सच्चाई और विश्वास है तो आपकी दृष्टि लोहे के पर्दे को भी चीर सकेगी | आपके विचारों की ठोकर से पहाड़-के-पहाड़ भी चकनाचूर हो सकेंगे
Pujya asaram ji bapu :-

Sunday, 20 November 2011

जो ईश्वर सर्वदा है वह अभी भी है। जो सर्वत्र है वह यहाँ भी है। जो सबमें है वह आपमें भी है। जो पूरा है वह आपमें भी पूरे का पूरा है। जैसे, आकाश सर्वदा, सर्वत्र, सबमें और पूर्ण है। घड़े में आकाश घड़े की उपाधि के कारण घटाकाश दिखता है और मठ का आकाश मठ की उपाधि होते हुए भी वह महाकाश से मिला जुला है। ऐसे ही आपके हृदय में, आपके घट में जो घटाकाशरूप परमात्मा है वही परमात्मा पूरे-का-पूरा अनंत ब्रह्माण्डों में है। ऐसा समझकर यदि उस परमात्मा को प्यार करो तो आप परमात्मा के तत्त्व को जल्दी समझ  जाओगे।
Pujya asaram ji bapu :-
भारत का आत्मज्ञान एक ऐसी कुंजी है जिससे सब विषयों के ताले खुल जाते हैं। संसार की ही नहीं, जन्म मृत्यु की समस्याएँ भी खत्म हो जाती हैं। लेकिन इस परमात्मस्वरूप के वे ही अधिकारी हैं जिनकी प्रीति भगवान में हो। भोगों में जिनकी प्रीति होती है और मिटने वाले का आश्रय लेते हैं ऐसे लोगों के लिए परमात्मस्वरूप अपना आपा होते हुए भी पराया हो जाता है और भोगों में जिनकी रूचि नहीं है, मिटनेवाले को मिटनेवाला समझते हैं एवं अमिट की जिज्ञासा है वे अपने परमात्मस्वरूप को पा लेते हैं। यह परमात्मस्वरूप कहीं दूर नहीं है। भविष्य में मिलेगा ऐसा भी नहीं है.... साधक लोग इस आत्मस्वरूप को पाने के लिए अपनी योग्यता बढ़ाते हैं। जो अपने जीवन का मूल्य समझते हैं ऐसे साधक अपनी योग्यता एवं बुद्धि का विकास करके, प्राणायाम आदि करके, साधन-भजन-जपादि करके परमात्म-स्वरूप को पाने के काबिल भी हो जाते हैं।
 Pujya asaram ji bapu :-


















अगर तुम सर्वांगपूर्ण जीवन का आनन्द लेना चाहते हो तो कल की चिन्ता को छोड़ो। कल तुम्हारा अत्यन्त आनन्दमय होगा, यह दृढ़ निश्चय रखो। जो अपने से अतिरिक्त किसी वस्तु को नहीं जानता, वह ब्रह्म है। अपने ख्यालों का विस्तार ही जगत है।
 Pujya asaram ji bapu :-

Saturday, 19 November 2011

पारिवारिक मोह और आसक्ति से अपने को दूर रखो। अपने मन में यह दृढ़  संकल्प करके साधनापथ पर आगे बढ़ो कि यह मेरा दुर्लभ शरीर न स्त्री-बच्चों के लिए है, न दुकान-मकान के लिए है और न ही ऐसी अन्य तुच्छ चीजों के संग्रह करने के लिए है। यह दुर्लभ शरीर आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए है। मजाल है कि अन्य लोग इसके समय और सामर्थ्य को चूस लें और मैं अपने परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार से वंचित रह जाऊँ? बाहर के नाते-रिश्तों को, बाहर के सांसारिक व्यवहार को उतना ही महत्त्व दो जहाँ तक कि वे साधना के मार्ग में विघ्न न बनें। साधना मेरा प्रमुख कर्त्तव्य है, बाकी सब कार्य गौण हैं – इस दृढ़ भावना के साथ अपने पथ पर बढ़ते जाओ।
Pujya asaram ji bapu :-
खुदा को खोजनेवाले ! तुमने अपनी खोजबीन में खुदा को लुप्त कर दिया है | प्रयत्नरूपी तरंगों में अनंत सामर्थ्यरूपी समुद्र को छुपा दिया है |
Pujya asaram ji bapu :-

Friday, 18 November 2011

किसी भी तरह समय बिताने के लिये मज़दूर की भांति काम मत करो | आनंद के लिये, उपयोगी कसरत समझकर, सुख, क्रीड़ा या मनोरंजक खेल समझकर एक कुलीन राजकुमार की भांति काम करो | दबे हुए, कुचले हुए दिल से कभी कोई काम हाथ में मत लो |
Pujya asaram ji bapu :-

Thursday, 17 November 2011

आप ही इस जगत के ईश्वर हो | आपको कौन दुर्बल बना सकता है ? जगत में आप ही एकमात्र सत्ता हो | आपको किसका भय ? खड़े हो जाओ | मुक्त हो जाओ | ठीक से समझ लो कि जो कोई विचार या शब्द आपको दुर्बल बनाता है, वही एकमात्र अशुभ है | मनुष्य को दुर्बल व भयभीत करनेवाला जो कुछ इस संसार में है, वह पाप है |
Pujya asaram ji bapu :-

Wednesday, 16 November 2011

स्वप्न से जाग कर जैसे स्वप्न को भूल जाते हैं वैसे जाग्रत से जागकर थोड़ी देर के लिए जाग्रत को भूल जाओ | रोज प्रातः काल में पन्द्रह मिनट इस प्रकार संसार को भूल जाने की आदत डालने से आत्मा का अनुसंधान हो सकेगा |  इस प्रयोग से सहजावस्था प्राप्त होगी |
Pujya asaram ji bapu :-

Tuesday, 15 November 2011

एकाग्रता और भगवददर्शन

जिस मूर्ति को गौरांग निहारते थे उस जगन्नाथजी को औरों ने भी निहारा था। लेकिन गौरांग की इतनी एकाग्रता थी कि वे सशरीर उसी मूर्ति में समा गये। जिस मूर्ति को मीराजी देखती थी उस मूर्ति को और लोग भी देखते थे। लेकिन मीरा की एकाग्रता ने अदभुत चमत्कार कर दिया। धन्ना जाट ने सिलबट्टा पाया पण्डित से। जिस सिलबट्टे से पण्डित रोज भाँग रगड़ता था वही सिलबट्टा धन्ना जाट की दृष्टि में ठाकुरजी बना और पूजा में रखा गया। धन्ना जाट की इतनी एकाग्रता हुई कि ठाकुर जी को उसी सिलबट्टे में से प्रकट होना पड़ा। काले कुत्ते को अनेक यात्रियों ने देखा। नामदेव भी एक यात्री थे। अलग-अलग तम्बू लगाकर यात्री लोग भोजन बना रहे थे। कुत्ते को आया देखकर कोई बोलाः यह अपशकुन है। किसी ने कहाः काला कुत्ता तो शकुन माना जाता है। वे लोग कुत्ते की चर्चा कर रहे थे और इतने में कुत्ता नामदेव की रोटी लेकर भागा। कुत्ते में भी भगवान को निहारनेवाले भक्त नामदेव घी की कटोरी लेकर पीछे भागे। सबमें भगवान को निहारने की उनकी इतनी एकाग्रता थी, इतनी दृढ़ता थी कि उस कुत्ते में से भगवान को प्रकट होना पड़ा। 
Pujya asaram ji bapu  :-
स्वर्ग का साम्राज्य आपके भीतर ही है | पुस्तकों में, मंदिरों में, तीर्थों में, पहाड़ों में, जंगलों में आनंद की खोज करना व्यर्थ है | खोज करना ही हो तो उस अन्तस्थ आत्मानंद का खजाना खोल देनेवाले किसी तत्ववेत्ता महापुरुष की खोज करो |
 Pujya asaram ji bapu :-

Monday, 14 November 2011

जैसे मछलियाँ जलनिधि में रहती हैं, पक्षी वायुमंडल में ही रहते हैं वैसे आप भी ज्ञानरूप प्रकाशपुंज में ही रहो, प्रकाश में चलो, प्रकाश में विचरो, प्रकाश में ही अपना अस्तित्व रखो | फिर देखो खाने-पीने का मजा, घूमने-फिरने का मजा, जीने-मरने का मजा |
Pujya asaram ji bapu :-
 प्रकृति प्रसन्नचित्त एवं उद्योगी कार्यकर्ता को हर प्रकार से सहायता करती है |
Pujya asaram ji bapu :-

Sunday, 13 November 2011

 यह चराचर सृष्टिरूपी द्वैत तब तक भासता है जब तक उसे देखनेवाला मन बैठा है | मन शांत होते ही द्वैत की गंध तक नहीं रहती |
Pujya asaram ji bapu :-
जिस प्रकार एक धागे में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ फूल पिरोये हुए हैं, उसी प्रकार मेरे आत्मस्वरूप में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ शरीर पिरोये हुए हैं | जैसे फूलों की गुणवत्ता का प्रभाव धागे पर नहीं पड़ता, वैसे ही शरीरों की गुणवत्ता का प्रभाव मेरी सर्वव्यापकता नहीं पड़ता | जैसे सब फूलों के विनाश से धागे को कोई हानि नहीं, वैसे शरीरों के विनाश से मुझ सर्वगत आत्मा को कोई हानि नहीं होती |
Pujya asaram ji bapu :-

Saturday, 12 November 2011

सत्यस्वरूप महापुरुष का प्रेम सुख-दुःख में समान रहता है, सब अवस्थाओं में हमारे अनुकूल रहता है | हृदय का एकमात्र विश्रामस्थल वह प्रेम है | वृद्धावस्था उस आत्मरस को सुखा नहीं सकती | समय बदल जाने से वह बदलता नहीं | कोई विरला भाग्यवान ही ऐसे दिव्य प्रेम का भाजन बन सकता है |
Pujya asaram ji bapu :-

Friday, 11 November 2011

खबरदार ! जो समय गुरु-सेवन, ईश्वर-भक्ति और सत्संग में लगाना है, वह यदि जड़ पदार्थों में लगाया तो तुम भी जड़ीभाव को प्राप्त हो जाओगे। तुमने अपना सामर्थ्य, शक्ति, पैसा और सत्ता अपने मित्रों व सम्बन्धियों में ही मोहवश लगाया तो याद रखो, कभी-न-कभी तुम ठुकराये जाओगे, दुःखी बनोगे और तुम्हारा पतन हो ही जायेगा।
Pujya asaram ji bapu  :-
किसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुच्छ विषयों की माँग मत करो। विषयों की माँग कोई भी हो, तुम्हें दीन बना देगी। विषयों की दीनतावालों को भगवान नहीं मिलते। नाऽयमात्मा बलहीनेन लभ्यः

इसलिए भगवान की पूजा करनी हो तो भगवान बनकर करो। देवो भूत्वा देवं यजेत्
जैसे भगवान निर्वासनिक हैं, निर्भय हैं, आनन्दस्वरूप हैं, ऐसे तुम भी निर्वासनिक और निर्भय होकर आनन्द में रहो। यही उसकी महा पूजा है।
Pujya asaram ji bapu :-
दीनता-हीनता पाप है। तुम तो मौत से भी निर्भयतापूर्वक कहोः मौत ! मेरे शरीर को छीन सकती है, पर मेरा कुछ नहीं कर सकती। तू क्या डरायेगी मुझे? दुनिया की रंगीनियाँ ! संसार के प्रलोभनो ! तुम मुझे क्या फँसाओगे? तुम्हारी पोल मैंने जान ली है। दुनिया के रीत-रिवाजो ! सुख-दुःखो ! अब तुम मुझे क्या नचाओगे? अब लाख-लाख काँटों पर भी मैं निर्भयतापूर्वक कदम रखूँगा। हजार-हजार उत्थान और पतन में भी मैं ज्ञान की आँख से देखूँगा। मुझ आत्मा को कैसा भय? मेरा कुछ न बिगड़ा है न बिगड़ेगा। शाबाश है ! शाबाश है !! शाबाश है !!!
Pujya asaram ji bapu  :-