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प्राकृतिक विधान ❘❘ Pujya Asaram Bapu Ji ❘❘
जिस वस्तु और बल का मनुष्य सदुपयोग नहीं करता, वह वस्तु और शक्ति उससे छिन जाती है,यह प्राकृतिक नियम है।
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मातृछाया ( प्रेरक कथा )
सम्राट उत्तानपाद और सुमति के पुत्र ध्रुव ने मातृभक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था। माता सुमति वृद्धावस्था में वनांचल में संन्यस्त थीं। ध्रुव के व्यक्तित्व में राजा और ऋषि का मणि-कांचन संयोग था। वे जितने भगवत् भक्त थे, उतने ही मातृभक्त भी थे। अंत समय में जब स्वर्ग का विमान उन्हें लेने आया तो मृत्यु स्वयं उनके समक्ष दंडवत होकर बोली ‘‘भगवान् ! आप मेरे मष्तक पर पादस्पर्श करते हुए विमान की सीढ़ियाँ चढ़ जाएँ। मैं कृतार्थ हो जाऊँगी।’’ ध्रुव ने ऐसा ही किया। पल भर में उनका पंचमौलिक शरीर दैवीदेह में बदल गया। मत्युलोक त्यागकर स्वर्गारोहण करने वाली जीवआत्मा अपना भौतिक अतीत भूल जाती है। मगर ध्रुव को एक बात याद थी।
उन्होंने उन्हें लेने आए देवदूतों से कहा कि ‘‘इस विमान को तुरंत मृत्युलोक की ओर मोड़ दो, क्योंकि वहाँ मेरी जो अमूल्य वस्तु रह गई है, उसके बिना मेरा स्वर्गारोहण अधूरा ही रहेगा।’’ देवदूतों ने पूछा कि ‘‘ऐसी कौन सी अलौकिक स्मृति है जिसे आप स्वर्गारोही की स्थिति में भी नहीं छो़ड़ना चाहते हैं।’’ ध्रुव बोले की वहाँ मेरी माता श्री हैं, जो मेरे समस्त ज्ञान की स्त्रोतस्विनी हैं। मैं उनके बिना स्वर्ग जाकर क्या करूँगा।’’ तभी देवदूतों ने उन्हें इशारे से कुछ बताया। ध्रुव ने अपने विमान के आगे एक अति भव्य विमान को जाते हुए देखा। देवदूतों ने कहा कि हमने आपकी माता श्री को आपसे पहले स्वर्ग भेजने की व्यवस्था कर दी है। मातृभक्त ध्रुव को अति संतोष हुआ कि वहाँ भी मैं उसी मातृछाया में रहूँगा, जो सदैव मेरे सन्मार्ग का संबल रही हैं। ईश्वर को अपने भक्त की माँ के प्रति श्रद्धा का आभास था।
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