सफलता की कुंजी- Bapu Ji
ज्ञानपूर्वक अनुभव करो कि मैं किसी भी काल में देह नहीं हूँ और न देह मेरा है। आस्था श्रद्धा श्विष्वास पूर्वक
स्वीकार करो कि अपने में अपने प्रेमास्पद सदैव मौजूद हैं। बस, यही सफलताकी कुंजी है।
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'वहाँ देकर छूटे तो यहाँ फिट हो गये'(बोध कथा)
सुनी है एक सत्य घटनाः
अमदावाद, शाहीबाग में डफनाला के पास हाईकोर्ट के एक जज सुबह में दातुन करते हुए घूमने निकले। नदी की तरफ दो रंगरूट (मनचले) जवान आपस में हँसी मजाक कर रहे थे। एक ने सिगरेट सुलगाने के लिए जज से माचिस माँगी। जज ने इशारे से इनकार कर दिया। थोड़ी देर इधर-उधर टहलकर जज हवा खाने के लिए कहीं बैठ गये, लेकिन उन दोनों को देख ही रहे थे। इतने में वे रंगरूट हँसी-मजाक, तू-तू, मैं-मैं करते हुए लड़ पड़े। एक ने रामपुरी चाकू निकालकर दूसरे शरीर में घुसेड़ दिया, खून कर डाला और पलायन हो गया। जज ने पुलिस को फोन आदि सब किया होगा। खून का केस बना। सेशन कोर्ट से वह केस घूमता घामता कुछ समय के बाद आखिर हाईकोर्ट में उन्हीं जज के पास आया। उन्होंने केस जाँचा तो पता चला कि केस वही है। उस दिन वाली घटना का उन्हें ठीक स्मरण था। उन्होंने अपराधी को देखा तो पाया कि यह उस दिन वाला रंगरूट युवक तो नहीं है।
वे जज कर्मफल के अकाट्य सिद्धान्त को मानने वाले थे। वे समझते थे कि लोभ-रिश्वत या और कोई भी अशुभ कर्म, पापकर्म करते समय तो अच्छा लगता है लेकिन समय पाकर उसका फल भोगना ही पड़ता है। कुछ समय के लिए आदमी किन्ही कारणों से चाहे छूट जाय लेकिन देर-सवेर कर्म का फल उसे मिलता है, मिलता है और मिलता ही है।
जज ने देखा कि यह आदमी को बूढ़ा है जबकि खून करने वाला रंगरूट तो जवान था। उन्होंने बूढ़े को अपने चेम्बर में बुलाया। बूढ़ा रोते-रोते कहने लगाः "साहब ! डफनाला के पास, साबरमती का किनारा... यह सब घटना मैं बिल्कुल जानता ही नहीं हूँ। भगवान की कसम, मैं निर्दोष मारा जा रहा हूँ।"
जज सत्त्वगुणी थे, सज्जन थे, निर्मल विचारों वाले एवं खुले मन के थे, निर्भय थे। निःस्वार्थी और सात्त्विक आदमी निर्भय रहता है। उन्होंने बूढ़े से कहाः "देखो, तुम इस मामले में कुछ नहीं जानते यह ठीक है, लेकिन सेशन कोर्ट में तुम पर यह अपराध बिल्कुल फिट हो गया है। हम तो केवल कानून का पालन करते हैं। अब इसमें हम और कुछ नहीं कर सकते। इस केस में तुम नहीं थे ऐसा तो मैं भी कहता हूँ, फिर भी यह बात उतनी ही निश्चित है कि अगर तुमने जीवनभर कहीं भी किसी इन्सान की हत्या नहीं की होती तो आज सेशन कोर्ट के द्वारा ऐसा सटीक केस तुम पर बैठ नहीं सकता था।
काका ! अब सच बताओ, तुमने कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी, अपनी जवानी में किसी व्यक्ति को मारा था?"
उस बूढ़े ने कबूल करते हुए कहाः "साहब ! अब मेरे आखिरी दिन हैं। आप पूछते हैं तो बता देता हूँ कि आपकी बात सही है। मैंने दो खून किये थे और रिश्वत देकर छूट गया था।"
जज बोलेः "तुम तो देकर छूट गये लेकिन जिन्होंने लिया उनसे फिर उनके बेटे लेंगे, उनकी बेटियाँ लेंगी, कुदरत किसी-न-किसी हिसाब से बदला लेगी। तुम वहाँ देकर छूटे तो यहाँ फिट हो गये। उस समय लगता है कि छूट गये लेकिन कर्म का फल तो देर-सवेर भोगना ही पड़ता है।"
कर्म का फल जब भोगना ही पड़ता है तो क्यों न बढ़िया कर्म करें ताकि बढ़िया फल मिले? बढ़िया कर्म करके फल भगवान को ही क्यों न दे दें ताकि भगवान ही मिल जायें?
नारायण.... नारायण.... नारायण.... नारायण...... नारायण...... नारायण.....
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