~~~~ संत सान्निध्य ~~~~
जिनका जीवन आज भी किसी संत या महापुरुष के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सान्निध्य में है, उनके जीवन में निश्चिन्तता, निर्विकारिता, निर्भयता, प्रसन्नता, सरलता, समता व दयालुता के दैवी गुण साधारण मानवों की अपेक्षा अधिक ही होते हैं तथा देर-सवेर वे भी महान हो जाते हैं और जो लोग महापुरुषों का, धर्म का सामीप्य व मार्गदर्शन पाने से कतराते हैं, वे प्रायः अशांत, उद्विग्न व दुःखी देखे जाते हैं व भटकते रहते हैं। इनमें से कई लोग आसुरी वृत्तियों से युक्त होकर संतों के निन्दक बनकर अपना सर्वनाश कर लेते हैं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
जिनका जीवन आज भी किसी संत या महापुरुष के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सान्निध्य में है, उनके जीवन में निश्चिन्तता, निर्विकारिता, निर्भयता, प्रसन्नता, सरलता, समता व दयालुता के दैवी गुण साधारण मानवों की अपेक्षा अधिक ही होते हैं तथा देर-सवेर वे भी महान हो जाते हैं और जो लोग महापुरुषों का, धर्म का सामीप्य व मार्गदर्शन पाने से कतराते हैं, वे प्रायः अशांत, उद्विग्न व दुःखी देखे जाते हैं व भटकते रहते हैं। इनमें से कई लोग आसुरी वृत्तियों से युक्त होकर संतों के निन्दक बनकर अपना सर्वनाश कर लेते हैं।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.