अज्ञान
से,
अज्ञानियों
के संग से,
अज्ञानियों
की बातों से
अन्तःकरण में
अविद्या का
निर्माण होता
है और जीव
दुःख का भागी
बनता है।
चित्त में
और व्यवहार
में जितनी
चंचलता होगी, जितनी
अज्ञानियों
के बीच घुसफुस
होगी, जितनी बातचीत
होगी उतना
अज्ञान
बढ़ेगा।
जितनी आत्मचर्चा
होगी, जितना
त्याग होगा,
दूसरों के दोष
देखने के बजाय
गुण देखने की
प्रवृत्ति
होगी उतना अपने
जीवन का
कल्याण होगा।
-Pujya Asharam Ji Bapu
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