Wednesday, 11 May 2016

1443_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

" हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यासरूप से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन
करता हुआ मनुष्य परम प्रकाशरूप उस दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है। "



-श्रीमद्भगवद्गीता


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