किं
भूषणाद्
भूषणमस्ति
शीलम्
तीर्थं
परं किं
स्वमनो
विशुद्धम्।
किमत्र
हेयं कनकं च
कान्ता
श्राव्यं
सदा किं
गुरूवेदवाक्यम्।।
'उत्तम-से-उत्तम
भूषण क्या है ? शील।
उत्तम तीर्थ
क्या है ? अपना
निर्मल मन ही
परम तीर्थ है।
इस जगत में त्यागने
योग्य क्या है
? कनक और
कान्ता
(सुवर्ण और
स्त्री)।
हमेशा सुनने
योग्य क्या है
?
सदगुरू और वेद
के वचन।'
श्री
शंकराचार्यविरचित
'मणिरत्नमाला' का यह
आठवाँ श्लोक
है।
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