साधकों के
लिए माला बड़ा
महत्त्वपूर्ण
साधन है।
मंत्रजाप में
माला बड़ी
सहायक होती
है। इसलिए
समझदार साधक
अपनी माला को
प्राण जैसी
प्रिय समझते
हैं और गुप्त
धन की भाँति
उसकी सुरक्षा
करते हैं।
जपमाला की प्राण-प्रतिष्ठा
पीपल के पत्ते
पर रखकर उसकी
पूजा इस मंत्र
के साथ करें-
त्वं
माले
सर्वदेवानां
प्रीतिदा
शुभदा भव।
शिवं
कुरुष्व मे
भद्रे यशो
वीर्यं च
सर्वदा।।
अर्थात् 'हे
माला !
तू सर्व देवों
की प्रीति और
शुभ फल देने
वाली है। मुझे
तू यश और बल दे
तथा सर्वदा
मेरा कल्याण
कर।' इससे
माला में
वृत्ति जागृत
हो जाती है और
उसमें
परमात्म-चेतना
का आभास आ
जाता है। माला
को कपड़े से
ढँके बिना या
गौमुखी में
रखे बिना जो
जप किये जाते
हैं वे फलते
नहीं।
Pujya Asharam Ji Bapu
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