अंतिम दम तक
मोमबत्ती जलाई जाती है, तो बस जलती ही जाती है- जब तक जलकर निःशेष नही हो जाती बुझने का नाम ही नही लेती।
निष्ठावान साधक को भी यही स्थिति है, वह मोमबत्ती की तरह जीवन की अतिम सास तक अपने लक्ष्य के लिए जलता ही रहता है जीवन के रणक्षेत्र मे हाथी की तरह अंतिम दम तक जूझता ही चला जाता है ।
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