अपूर्णता (प्रेरक विचार)
मैने देखा–एक यात्री पथ पर कभी इधर, कभी उधर भटक रहा है उसे नहीं मालूम उसकी मजिल किधर है और उसका रास्ता कौन-सा, किधर से जाता है। मैंने देखा-एक पक्षी जिसके सुनहरे पख किसी ने काट डाले है, बिचारा तडफडा रहा है। मैंने देखा—एक विशाल वृक्ष पत्तियो और फूलो से लदा खडा है, उस पर एक भी फल नही है । मैंने देखा-एक सुन्दर विशाल भवन राजपथ पर सिर उठाए खडा है, पर उसमे प्रवेश करने का कोई द्वार ही नहीं वना है।
इन चारो की अपूर्णता पर विचार करते-करते मैने एक विद्वान को देखा. जिसने नीति और धर्म पर लम्बे-चोडे भाषण तो दिए, किन्तु उसके जीवन में कही भी धर्म का दर्शन नही हुआ मैने सोचा उनकी अपूर्णता सिर्फ उन्हे ही दुखदायी है, लेकिन इस धर्महीन विद्वान की अपूर्णता देश के लिए भी चिंता का विषय है ।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.