Saturday, 29 September 2012

807_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थ कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।
'यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मनुष्य-समुदाय कर्मों से बँधता है। इसलिए हे अर्जुन ! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भली भाँति कर्त्तव्य कर्म कर।'
(भगवद् गीताः 3.9)

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...