Tuesday, 29 May 2012
569_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
बाहर के
शत्रु-मित्र
का ज्यादा
चिन्तन मत करो।
बाहर की
सफलता-असफलता
में न उलझो।
आँखें खोलो।
शत्रु-मित्र,
सफलता-असफलता
सबका मूल
केन्द्र वही
अधिष्ठान
आत्मा है और
वह आत्मा
तुम्हीं हो
क्यों कें...
कें... करके
चिल्ला रहे
हो, दुःखी हो
रहे हो? दुःख और
चिन्ताओं के
बन्डल बनाकर
उठा रहे हो और
सिर को थका
रहे हो? दूर फेंक
दो सब
कल्पनाओं को। 'यह
ऐसा है वह ऐसा
है... यह कर
डालेगा... वह
मार देगा.... मेरी
मुसीबत हो
जाएगी....!' अरे ! हजारों
बम गिरे फिर
भी तेरा कुछ
नहीं बिगाड़
सकता। तू ऐसा
अजर-अमर आत्मा
है।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Monday, 28 May 2012
568_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
अन्तःकरण
की दो धाराएँ
होती हैं- एक
होती है चिन्ता
की धारा और
दूसरी होती है
चिन्तन की
धारा, विचार
की धारा।
जिसके
जीवन में
दिव्य विचार
नहीं है,
दिव्य चिन्तन
नहीं है वह
चिन्ता की खाई
में गिरता है।
चिन्ता से
बुद्धि
संकीर्ण होती
है। चिन्ता से
बुद्धि का
विनाश होता
है। चिन्ता से
बुद्धि कुण्ठित
होती है।
चिन्ता से
विकार पैदा
होते हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu
Sunday, 27 May 2012
562_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
एक दिन तुम
यह सब छोड़
जाओगे और
पश्चाताप हाथ
लगेगा। उससे
पहले मोह-ममतारूपी
पाश को विवेकरूपी
कैंची से
काटते रहना।
बाहर के
मित्रों से, सगे-सम्बन्धियों
से मिलना, पर
भीतर से समझनाः
‘न कोई
मित्र है न सगे-सम्बन्धी,
क्योंकि ये भी
सब साथ छोड़
जायेंगे।
मेरा मित्र तो
वह है जो अन्त
में और इस शरीर
की मौत के बाद
भी साथ न
छोड़े’।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
Saturday, 26 May 2012
559_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
व्यक्ति जब
प्रेम से
सराबोर होकर 'हे
भगवान ! हे खुदा ! हे
प्रभु ! हे मालिक ! हे
ईश्वर ! कहते हुए
अहोभाव से 'हरि बोल'
कहते हुए
हाथों को आकाश
की ओर उठाता
है तो जीवनशक्ति
बढ़ती है। डॉ.
डायमण्ड इसको 'थायमस
जेस्चर' कहते
हैं। मानसिक
तनाव, खिंचाव,
दुःख-शोक,
टेन्शन के समय
यह क्रिया
करने से और 'हृदय
में दिव्य
प्रेम की धारा
बह रही है' ऐसी
भावना करने से
जीवन-शक्ति की
सुरक्षा होती
है।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
558_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जब तक
देहाभिमान की
नालियों में
पड़े रहोगे तब
तक चिन्ताओं
के बन्डल
तुम्हारे सिर
पर लदे
रहेंगे।
तुम्हारा अवतार
चिन्ताओं के
जाल में फँस
मरने के लिए
नहीं हुआ है।
तुम्हारा
जन्म संसार की
मजदूरी करने के
लिए नहीं हुआ
है, हरि का
प्यारा होने
के लिए हुआ
है। हरि को
भजे सो हरि का
होय।
ख्वामखाह चाचा
मिटकर भतीजा
हो रहे हो ?
दुर्बल विचारों
और कल्पनाओं
की जाल में
बँध रहे हो ? कब तक
ऐसी नादानी
करते रहोगे
तुम ? ॐ..ॐ...ॐ...
Pujya Asharam Ji Bapu
Friday, 25 May 2012
Wednesday, 23 May 2012
Tuesday, 22 May 2012
Monday, 21 May 2012
539_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
हे साधक ! तथा
कथित मित्रों
से, सांसारिक
व्यक्तियों से
अपने को बचाकर
सदा एकाकी
रहना। यह तेरी
साधना की परम
माँग है।
स्वामी
रामतीर्थ
प्रार्थना
किया करते थेः
"हे
प्रभु !
मुझे सुखों से
और मित्रों से
बचाओ। दुःखों
से और शत्रुओं
से मैं निपट
लूँगा। सुख और
मित्र मेरा
समय व शक्ति
बरबाद कर देते
हैं और आसक्ति
पैदा करते
हैं। दुःखों
में और
शत्रुओं में
कभी आसक्ति
नहीं होती।
जब-जब साधक
गिरे हैं तो
तुच्छ सुखों
और मित्रों के
द्वारा ही
गिरे हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu
538_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
विषय सुख की लोलुपता आत्मसुख प्रकट नहीं होने देती। सुख की लालच और दुःख के भय ने अन्तःकरण को मलिन कर दिया। तीव्र विवेक-वैराग्य हो, अन्तःकरण के साथ का तादात्म्य तोड़ने का सामर्थ्य हो तो अपने नित्य, मुक्त, शुद्ध, बुद्ध, व्यापक चैतन्य स्वरूप का बोध हो जाय।
Pujya Asharam Ji Bapu
Sunday, 20 May 2012
Saturday, 19 May 2012
Friday, 18 May 2012
Thursday, 17 May 2012
525_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जो लोग
रूचि के
अनुसार सेवा
करना चाहते
हैं, उनके
जीवन मे बरकत
नहीं आती।
किन्तु जो
आवश्यकता के
अनुसार सेवा
करते हैं,
उनकी सेवा
रूचि मिटाकर
योग बन जाती
है। पतिव्रता
स्त्री जंगल में
नहीं जाती,
गुफा में नहीं
बैठती। वह
अपनी रूचि पति
की सेवा में
लगा देती है।
उसकी अपनी
रूचि बचती ही
नहीं है। अतः
उसका चित्त
स्वयमेव योग में
आ जाता है। वह
जो बोलती है,
ऐसा प्रकृति
करने लगती है।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu
523_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
विघ्न,
बाधाएँ, दुःख,
संघर्ष, विरोध
आते हैं वे तुम्हारी
भीतर की शक्ति
जगाने कि लिए
आते है। जिस
पेड़ ने
आँधी-तूफान
नहीं सहे उस
पेड़ की जड़ें
जमीन के भीतर
मजबूत नहीं
होंगी। जिस
पेड़ ने जितने
अधिक आँधी
तूफान सहे और
खड़ा रहा है
उतनी ही उसकी
नींव मजबूत है।
ऐसे ही दुःख,
अपमान, विरोध
आयें तो ईश्वर
का सहारा लेकर
अपने ज्ञान की
नींव मजबूत
करते जाना
चाहिए। दुःख,
विघ्न, बाधाएँ
इसलिए आती हैं
कि तुम्हारे
ज्ञान की
जड़ें गहरी
जायें। लेकिन
हम लोग डर
जाते है।
ज्ञान के मूल
को उखाड़ देते
हैं।
Pujya Asharam Ji Bapu
Pujya Asharam Ji Bapu