Saturday, 12 November 2011

सत्यस्वरूप महापुरुष का प्रेम सुख-दुःख में समान रहता है, सब अवस्थाओं में हमारे अनुकूल रहता है | हृदय का एकमात्र विश्रामस्थल वह प्रेम है | वृद्धावस्था उस आत्मरस को सुखा नहीं सकती | समय बदल जाने से वह बदलता नहीं | कोई विरला भाग्यवान ही ऐसे दिव्य प्रेम का भाजन बन सकता है |
Pujya asaram ji bapu :-

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.