Wednesday, 29 February 2012
Tuesday, 28 February 2012
Monday, 27 February 2012
Sunday, 26 February 2012
257_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
याद रखो : आपके अंतःकरण में स्वास्थय, सुख, आनंद और शान्ति ईश्वरीय वरदान के रूप में विद्यमान है | अपने अंतःकरण की आवाज़ सुनकर निशंक जीवन व्यतीत करो | मन में से कल्पित रोग के विचारों को निकाल दो | प्रत्येक विचार, भाव, शब्द और कार्य को ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण रखो | ॐकार का सतत गुंजन करो |
Pujya asharam ji bapu
255_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
नुष्य वाणी के संयम द्वारा अपनी शक्तियों को विकसित कर सकता है। मौन से आंतरिक शक्तियों का बहुत विकास होता है। अपनी शक्ति को अपने भीतर संचित करने के लिए मौन धारण करने की आवश्यकता है। कहावत है कि न बोलने में नौ गुण।
ये नौ गुण इस प्रकार हैं। 1. किसी की निंदा नहीं होगी। 2. असत्य बोलने से बचेंगे। 3. किसी से वैर नहीं होगा। 4. किसी से क्षमा नहीं माँगनी पड़ेगी। 5. बाद में आपको पछताना नहीं पड़ेगा। 6. समय का दुरूपयोग नहीं होगा। 7. किसी कार्य का बंधन नहीं रहेगा। 8. अपने वास्तविक ज्ञान की रक्षा होगी। अपना अज्ञान मिटेगा। 9. अंतःकरण की शाँति भंग नहीं होगी।
Pujya asharam ji bapu Saturday, 25 February 2012
Friday, 24 February 2012
Thursday, 23 February 2012
Wednesday, 22 February 2012
Tuesday, 21 February 2012
245_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
विश्वं स्फुरति यत्रेदं तरंगा इव सागरे।
तत्त्वमेव न सन्देहश्चिन्मूर्ते विज्वरो भव ।।
श्रद्धत्स्व तात श्रद्धत्स्व नात्र मोहं कुरुष्व भोः।
ज्ञानस्वरूपो भगवानात्मा त्वं प्रकृतेः परः।।
'जहाँ से यह संसार, सागर में तरंगों की तरह स्फुरित होता है सो तू ही है, इसमें सन्देह नहीं। हे चैतन्यस्वरूप ! संताप रहित हो। हे सौम्य ! हे प्रिय ! श्रद्धा कर, श्रद्धा कर। इसमें मोह मत कर। तू ज्ञानस्वरूप, ईश्वर, परमात्मा, प्रकृति से परे है।'
(अष्टावक्रगीता)Monday, 20 February 2012
Sunday, 19 February 2012
Saturday, 18 February 2012
235_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिः। जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
हम धर्म जानते हैं लेकिन उस धर्म में हमारी प्रवृत्ति नहीं हो रही है। हम अधर्म को जानते हैं लेकिन उस अधर्म से हमारी निवृत्ति नहीं हो रही है। हम जानते हैं कि यह अच्छा नहीं है फिर भी उसमें फँसे रहते हैं। हम जानते हैं कि यह अच्छा है लेकिन उसमें हमारी प्रवृत्ति नहीं हो पाती।
Pujya asharam ji bapu
233_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जीवन में निर्भयता आनी चाहिए। भय पाप है, निर्भयता जीवन है। जीवन में अगर निर्भयता आ जाय तो दुःख, दर्द, शोक, चिन्ताएँ दूर हो जाती हैं। भय अज्ञानमूलक है, अविद्यामूलक है और निर्भयता ब्रह्मविद्यामूलक हैं। जो पापी होता है, अति परिग्रही होता है वह भयभीत रहता है। जो निष्पाप है, परिग्रह रहित है अथवा जिसके जीवन में सत्त्वगुण की प्रधानता है वह निर्भय रहता है।Pujya asharam ji bapu
Friday, 17 February 2012
230_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
तालुस्थान में जिह्वा लगाने से जीवन-शक्ति केन्द्रित हो जाती है। इसीलिए प्राचीन काल से ही योगीजन तालुस्थान में जिह्वा लगाकर जीवन-शक्ति को बिखरने से रोकते रहे होंगे। डॉ. डायमण्ड ने म्रत्रजप एवं ध्यान के समय इस प्रकिया से जिन साधकों की जीवन-शक्ति केन्द्रित होती थी उनमें जप-ध्यान से शक्ति बढ़ रही थी, वे अपने को बलवान महसूस कर रहे थे। अन्य वे साधक जो इस क्रिया के बिना जप-ध्यान करते थे उन साधकों की अपेक्षा दुर्बलता महसूस करते थे।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Thursday, 16 February 2012
Wednesday, 15 February 2012
226_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
निज आत्मरूप में जाग
हो गयी रहमत गुरु की, हरिनाम रस को पा लिया।
ध्यान-रंग में डुबा दिया, निज आत्मभाव में जगा दिया।।
लज्जत1 है नाम-रस में, पी ले तू बारम्बार।
गुरुचरणों में पा ले, प्रभुप्रेम की खुमार।।
कामना को त्याग दे, कर ईश में अनुराग।
गफलत में क्यों सो रहा, निज आत्मरूप में जाग।।
1 स्वाद
225_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जीवन में उतार चढ़ाव आने पर, खट्टे-मीठे प्रसंग आने पर लोग दुःखी हो जाते हैं। अपने को पापी समझकर वे दुःखी हो रहे हैं। यह बड़ी गलती है। जीवन के विकास के लिए दुःख नितान्त जरूरी है। जीवन के उत्थान के लिए दुःख अति आवश्यक है।
सुख में विवेक सोता है और दुःख में विवेक जागता है। लेकिन दुःख में घबड़ाने से आदमी दुर्बल हो जाता है। दुःख का का सदुपयोग करने से आदमी बलवान् हो जाता है।
Pujya asharam ji bapu
Tuesday, 14 February 2012
223_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो। आत्मा मे अथाह सामर्थ्य है। अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हें ऊपर उठा सके। अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हें दबा सके।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
222_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
गलिते देहाध्यासे विज्ञाते परमात्मनि।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः।।
जब देहाध्यास गलित हो जाता है, परमात्मा का ज्ञान हो जाता है, तब जहाँ-जहाँ मन जाता है, वहाँ-वहाँ समाधि का अनुभव होता है, समाधि का आनन्द आता है।
देहाध्यास गलाने के लिए ही सारी साधनाएँ हैं। परमात्मा-प्राप्ति के लिये जिसको तड़प होती है, जो अनन्य भाव से भगवान को भजता है, 'परमात्मा से हम परमात्मा ही चाहते हैं.... और कुछ नहीं चाहते.....' ऐसी अव्यभिचारिणी भक्ति जिसके हृदय में है, उसके हृदय में भगवान ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं।
Pujya asharam ji bapu
Monday, 13 February 2012
221_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
उमा तिनके बड़े अभाग, जे नर हरि तजि विषय भजहिं।
परमात्मा को छोड़कर जो विषयों का चिन्तन करते हैं उनके बड़े दुर्भाग्य हैं। विष में और विषय में अन्तर है। विष का चिन्तन करने से मौत नहीं होती, विष का चिन्तन करने से पतन नहीं होता, विष जिस बोतल में रहता है उस बोतल का नाश नहीं करता लेकिन विषय जिस चित्त में रहता है उसको बरबाद करता है, विषय का चिन्तन करने मात्र से पतन होता है,Pujya asharam ji bapu